खेजड़ी कटने से मिट जाएगा मरुस्थलीय प्रकृति चक्र

AYUSH ANTIMA
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जापान के एक द्वीप पर अत्यधिक सांपों के होने से उस द्वीप पर खेती और वन्य संपदा के दोहन में विपदा आता थी। वहां मानव जाति का जाना खतरे से खाली नहीं होता। आदमी को सांप काट लेते और मौत हो जाती। इससे बचने के लिए उपाय सुझाया गया कि नेवले का भोजन सांप है। इस द्वीप पर नेवले छोड़ दिए जाए तो सांपों की संख्या कम हो जाएगी। जापान सरकार ने यही किया, भारत से नेवले मंगाकर वहां छोड़ दिए, कुछ ही सालों में देखा नेवले बड़ी संख्या में हो गए हैं। सांप कम होते जा रहे है। इसके साथ ही उस द्वीप की प्रकृति बदलने लगी। द्वीप का पूरा का पूरा जैविक तंत्र प्रभावित होने लगा। सरकार चिन्तित हुई, वहां नेवला मारने का अभियान चलाया गया। 40 हजार नेवले मारे गए। ऐसे ही पश्चिमी राजस्थान मरूस्थलीय प्रकृति चक्र वाला भू भाग है। यहां से सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन के लिए खेजड़ी काट ली गई तो पूरा का पूरा प्रकृति चक्र बदलना निश्चित है। वनस्पति वैज्ञानिक इस तरफ ध्यान आकर्षित करवा चुके हैं। लाखूसर गांव में सन ब्रिज सोलर के 1400 मेगावाट के प्रोजेक्ट के लिए एक रात में 565 खेजड़ी के पेड़ इन दिनों काटे गए हैं। जून माह में यहां कुल 807 खेजड़ी के पेड़ कटे हैं। अब तब मरूस्थलीय क्षेत्र में सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए कई गांवों में हजारों खेजड़ी के पेड़ कट चुके हैं। इसके विरुध्द जनान्दोलन भी हुआ। सरकार के स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हुई। पुलिस चुप है, क्योंकि अफसरों का कहना है कि खेजड़ी कटाई के मामले में टीनेंसी एक्ट 1956 में कार्रवाई का अधिकार राजस्व विभाग को है। इसके तहत एसडीएम 100 रुपए का जुर्माना कर सकता है। यह बात कानून क्या है या सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन का क्या आर्थिक तंत्र है, इसका प्रकृति चक्र से कोई तालुकात नहीं है। आप देखते जाईए अगले 5–7 सालों में अभी घूम रहे वन्य जीव, पक्षी, सरीसृप और कीट पतंगों में से आप कितनी प्रजातियां खो देंगे। कमेडी, चिडिया, कौवे चील मोर जैसे मरूस्थलीय पक्षी देखने को भी मिलेंगे या नहीं। कई तरह की वनस्पतियां भी आप सौर ऊर्जा के उत्पादन के परिणाम में खोने जा रहे हैं। मौसम भी कितना बदल जाएगा यह प्रकृति का रूख समय पर ही उजागर होगा। 
खेजड़ी कटाई के विरूध्द आवाज किसी भी स्तर पर नहीं सुनी जा रही है। समझते सब है कि खेजड़ी जैसा मरुस्थल का अति महत्वपूर्ण पेड़ कटने का परिणाम मानव जाति और प्रकृति को भुगतना पड़ेगा। राजनीति, नेता, प्रशासन और सरकारें सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के राष्ट्रीय लक्ष्य में लगे हुए हैं। जब प्राकृतिक विपदा आएगी तो फिर से खेजड़ी लगाने का राज्य अभियान चलाया जाएगा। राजस्थान सरकार ने खेजड़ी को राज्य वृक्ष घोषित किया है। हमारे साहित्य में खेजड़ी को उसकी महत्ता को देखते हुए अमी वृक्ष कहा गया है। राजस्थानी लोक जीवन में खेजड़ी की विशेषताओं को तीज त्यौहार, व्रत नियमों में बताया गया है। फिर अभी जनता की ओर से सरकार को चिलाचिलाकर बताने पर की खेजड़ी काट जा रही है। सरकार आंखें मूंदे बैठी है। इतने आन्दोलन और जगह जगह जन विरोध के बावजूद खेजड़ी कटती ही जा रही है। जनता और संगठन कितने ही आन्दोलन कर लें। जैसा सरकार का रवैया है, उससे लगता है कि खेजड़ी तो कटेगी ही। आखिर निर्णय यही है कि भावी पीढ़ी परिणाम भुगतने को तैयार रहे। प्रकृति किसी को माफ करने वाली नहीं है।

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