जयपुर (श्रीराम इंदौरिया): शनिवार को विश्व योग दिवस के अवसर पर संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा कि योगा देश की ना केवल संस्कृति है बल्कि यह देश की सभ्यता, संस्कार है, जो पुरे देश को एक-दुसरे से जोड़ते है, अपने-अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करती है और सभी को निरोगी रहने का मार्गदर्शन देती है, योग आज की संस्कृति नहीं है बल्कि यह प्राचीन काल से चली आ रही एक परम्परा है, जिसे कुछ स्वार्थी और अधर्मी लोगों ने अपने निजी अहंकार के चलते इसे विलुप्त कर दिया था किन्तु कोरोना काल में इस परम्परा को संजीवनी मिली और अब यह जन-जन जननी का आधार बन चुकी है, अब जब योगा को संजीवनी मिली है तो इसका व्यवसायीकरण होना भी प्रारम्भ हो गया है, जिस पर केंद्र सरकार सहित सभी राज्यों की सरकारों को अपना ध्यान आकर्षित करना चाहिए, जेसे पूर्व में योग की संस्कृति से पूरा देश विलुप्त हो गया था, ठीक ऐसे ही अब इसके व्यवसायीकरण से यह विलुप्त ना हो जायेगा क्योकि देश की आबादी का 75 फीसदी तबका रोजमरा की जिन्दगी में इतना व्यवस्त है की व्यवसायीकरण के चलते वह इससे दूर हो जायेगा।
संयुक्त अभिभावक संघ राजस्थान प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा की योग स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ औषधि है, यह इतनी सरल है की इसके धारण करने से अनेको रोगों से छुटकारा घर बेठे ही मिल सकता है, किन्तु डर इसी बात का है कि जिस प्रकार पूरे देश में शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा, खुलेआम शिक्षा के नाम लुट मची हुई है जिसके चलते लाखों - करोड़ों जरूरतमंद विधार्थी जरूरी शिक्षा तक से वंचित हो रहे है, ठीक इसी प्रकार अगर योगा का भी व्यवसायीकरण बंद नहीं हुआ, लगाम नहीं लगाई गई तो यह प्राचीन ओषधि जरूरतमंद लोगों से कोषों दूर हो जाएगी, जिस प्रकार प्राचीन काल में गुरुकुल के द्वारा जो संस्कारिक, स्वाभाविक और जरुरी शिक्षा दी जाती थी। आज उसी शिक्षा का व्यवसायीकरण कर विधार्थियों को ना केवल व्यवसायीकरण की शिक्षा दी जा रही है बल्कि नफ़रत, भेदभाव और प्रतिस्पर्द्धा करने की शिक्षा भी दी जा रही है। जिससे लोगों आपस में जुड़ने की बजाय टूट रहे है, अगर योग के व्यवसायीकरण को नहीं रोका गया और जरूरतमंद नागरिक तक योग का महत्व नहीं पहुँचाया गया तो यह प्राचीन ओषधि वापस विलुप्त हो जाएगी। योगा को जन-जन तक पहुचने की अति आवश्यकता है और जिसे स्कूलों और एनसीआरटी पाठ्य पुस्तकों शामिल कर जन-जन तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है, जिस पर सभी सरकारों को ध्यान देने की अति आवश्यकता है।