जयपुर (रुपेश टिंकर): मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा प्रदेश के विकास और जनता को राहत पहुंचाने के लिए कितने भी प्रयास करे, लेकिन लगता है निरंकुश अधिकारियों को उनकी मंशा की जरा भी परवाह नहीं है। प्रदेश का वह विभाग जो पत्रकारों से जुड़ा है और जिसके मंत्री स्वयं मुख्यमंत्री हैं, इसमें तो फिलहाल ऐसा ही नजर आ रहा है। वे पत्रकार जो जनता की आवाज सरकार तक पहुंचाने में सेतु का काम करते हैं और सरकार की जनता में छवि बनाने में अहम भूमिका अदा करते हैं, अपने ही विभाग सूचना एवं जनसम्पर्क में अपनी बात पहुंचाने में लाचार नजर आते हैं।
पत्रकारों के बीच रोजाना एक ही चर्चा सुनाई पड़ती है कि विभाग में उनकी सुनवाई नहीं हो रही। उनके जायज काम अधिकारियों ने अटका रखे हैं। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकारों की भी अधिकारियों के सामने नहीं चलती। मुख्यमंत्री अपनी अन्य प्राथमिकताओं के चलते पत्रकारों पर ध्यान नहीं दे पा रहे लेकिन जिन अधिकारियों और सलाहकारों को इसका जिम्मा दिया गया है, उन्हें तो ध्यान देना चाहिए। क्या ऐसे में मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान नहीं पहुंचाया जा रहा है। मामले एक नहीं अनेक हैं। विभाग की बजट घोषणाओं से पत्रकारों में सकारात्मक उम्मीद जगी है लेकिन घोषणाओं पर अमल नहीं होने से अब निराशा बढ़ने लगी है। सरकार के पहले बजट की घोषणा राजस्थान पत्रकार स्वास्थ्य योजना का हाल देखिए कि दूसरा बजट आने के बाद इसकी अधिसूचना जारी हो सकी, जबकि परेशान पत्रकार इसके लिए साल भर सरकार से मांग करते रहे। अधिकारियों की बेपरवाही के चलते दूसरे बजट की रिप्लाई के दिन मुख्यमंत्री के समक्ष उलाहना देने का नेता प्रतिपक्ष को भी मौका मिला तब जाकर अधिकारियों ने स्वास्थ्य योजना की अधिसूचना जारी कर इसे प्रदेश में लागू कराया। पत्रकार स्वास्थ्य योजना तो प्रदेश में लागू कर दी गई है, लेकिन ओपीडी की सुविधा नहीं होने के कारण यह योजना पंगु ही नजर आती है क्योंकि अस्पताल में भर्ती हुए बिना जो इलाज घर पर रहकर होना है, उसके लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं है। वैसे तो पत्रकारों को डायरी में 5 हजार रुपए की दवा का प्रावधान है, लेकिन इसे RGHS की तरह RJHS कार्ड में जोड़कर इस राशि को बढ़ाया जाना जरूरी है तभी योजना का उद्देश्य सार्थक हो सकेगा। अब दूसरे बजट में पत्रकारों के बच्चों को उच्च शिक्षा में छात्रवृत्ति की घोषणा मुख्यमंत्री ने की तो आर्थिक तंगी से परेशान पत्रकारों को अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा की उम्मीद जगी, लेकिन चार माह बाद भी इसे शुरू करने की किसी को परवाह नहीं है। सैकड़ों पत्रकार, जिनके बच्चे उच्च शिक्षा ले रहे हैं, विभाग की ओर मुंह ताके खड़े हैं, लेकिन योजना कब लागू होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लगता है कि स्वास्थ्य योजना की तरह ही यह योजना भी अगले बजट से पहले लागू नहीं हो पाएगी। इधर, अधिकारियों की बेपरवाही का खामियाजा लघु एवं मध्यम समाचार पत्र के प्रकाशकों को भी भारी पड़ रहा है। सरकार की प्रत्येक खबर और योजनाओं को अपने पत्र में प्रकाशित कर ये प्रकाशक उम्मीद करते हैं कि उन्हें भी समय समय पर सरकार के विज्ञापन प्राप्त होंगे, जिससे कि उनकी आर्थिक परेशानी थोड़ी कम हो। बड़े व्यावसायिक संस्थानों के समाचार पत्रों को जब प्रतिवर्ष करोड़ों के विज्ञापन जारी हुए हैं और लघु पत्रों के प्रकाशकों को विज्ञापनों से महरूम रखा गया है तो उनमें भी निराशा छाई है। अधिकारियों की कार्यशैली पर उनमें भी रोष व्याप्त हो रहा है। विभागीय अधिकारियों के ऊपर के अधिकारी मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठते हैं, उनसे मिलना भी हर किसी के लिए सहज नहीं है। वहीं मुख्यमंत्री के मीडिया वाले दोनों सलाहकार सचिवालय में मिल जाते हैं, लेकिन उन्हें भी या तो अपनी भूमिका की रस्म अदायगी के लिए ही बैठाया गया है या फिर उनकी भी अधिकारियों के सामने जरा भी नहीं चलती है। अधिकारियों की बेपरवाही के चलते पत्रकारों के बीच सरकार की जो छवि बन रही है, वह ठीक नहीं है। कुल मिलाकर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में जो कुछ चल रहा है, ठीक नहीं है।