अलवर (ब्यूरो): दलित अधिकार केन्द्र के तत्वाधान में अग्रवाल धर्मशाला, अलवर में दलित महिला नेतृत्व क्षमतावर्धन पर जिला स्तरीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस मौके पर केन्द्र के जिला समन्वयक शैलेष गौतम ने प्रशिक्षण शिविर के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दलित महिलाएं अत्यधिक रूप से भेदभाव का शिकार होती है। दलित महिलाओ में नेतृत्व करने की क्षमता का विकास कर उन्हें सक्षम करना ही कार्यक्रम का उद्देश्य है। केन्द्र की राज्य समन्वयक कश्मीरा सिंह ने कहा कि दलित अधिकार केन्द्र दलित समुदाय एवं महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के लिए 20 वर्षों से राजस्थान प्रदेश में लगातार कार्य कर रहा है। इसी के साथ दलित महिलाओं के लिए अलग से दलित महिला मंच के रूप में कार्य कर रहा है ताकि वो सक्षम बन सके और उनके अंदर नेतृत्व की भावना का विकास हो सके। उन्होंने कहा कि राजस्थान में आज भी दलित महिलाओं को अत्यधिक रूप से शोषण, हिंसा, उत्पीड़न तथा लिंग, जाति-वर्ग, आर्थिक और राजनीतिक भेदभाव का शिकार होना पड़ता है, जिसके कारण वो आज भी पिछड़ी हुई है। सरिता भारत सामाजिक महिला कार्यकर्ता ने समता संवर्धन की बात करते हुए कहा कि भारत देश में छुआछूत, जातिगत भेदभाव एवं महिला उत्पीड़न चरम सीमा पर है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व अनुच्छेद 21 हमें लड़ने का अधिकार प्रदान करते हैं, बावजूद इसके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता रहता है और दलित पीड़ितों को न्याय तक नहीं मिल पाता है। बाबा साहब ने पूरजोर विरोध के बावजूद हिंदू कोड बिल लागू करवाकर महिलाओं को संपत्ति के अधिकार दिलवाएं। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर 2 घंटे के भीतर दलित अत्याचारों की घटनाएं घटित होती रहती है, वही अलवर जिला महिला हिंसा एवं बलात्कार के मामलों का हब बन चुका है। महिलाओं में नेतृत्व की भावना स्थापित कर उन्हें आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
एडवोकेट प्रकाश चन्द सागर ने संवैधानिक मूल्यों पर चर्चा करते हुए महिलाओं को जागरुक होकर शिक्षा की ओर आगे बढ़ने की बात कही। वहीं अत्याचारों के खिलाफ न्याय प्राप्ति तक न्याय के लिए लड़ने एवं अपने अधिकारों व कानून की जानकारी प्राप्त कर जागरूक होने का संदेश दिया। एडवोकेट खुशबू सोलंकी राज्य समन्वयक जयपुर ने कहा कि महिलाएं सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा के शिकार होती है, इसके बाद बाहर ऐसा असामाजिक तत्वो द्वारा हिंसा, छेड़छाड़, बलात्कार आदि का शिकार होना पड़ता है। इसी प्रकार कार्य स्थल पर एक दलित महिला द्वारा यौन उत्पीड़न के संबंध में शिकायत करने पर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। इसके संबंध में पीड़िता व सामाजिक संगठनों द्वारा सामूहिक प्रयास से न्याय के लिए लड़ाई लड़ी गई, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशाखा गाइडलाइन बनी और कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम, पास्को एक्ट, पोस कमेटी जैसे सख्त कानून लागू हुए। हमें अधिकारों के साथ-साथ कानूनी जानकारी होना भी जरूरी है। सुशीला रानी दलित महिला मंच ने समाज को नशाखोरी से दूर होकर शिक्षा की ओर आगे बढ़ने का संदेश दिया।
इस मौके पर बन्ने सिंह, अंजना, शेर सिंह, रचना, सुशीला, कमला, हर्षवर्धन ने भी अपने विचार रखें और विभिन्न ब्लॉकों से दलित महिला कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।