झुंझुनू शहर में गांधी चौक पर लगने वाली रेहड़ियों को लेकर प्रशासन ने जो तत्परता दिखाई, वह स्वागत योग्य कदम है। प्रशासन इसे अस्थाई अतिक्रमण मानकर कार्यवाही की क्योंकि गांधी चौक पर जाम की स्थिति देखने को मिलती थी। वहां खड़े वाहनों को भी पुराने बस स्टेंड पर पार्किंग की सुविधा दी गई लेकिन जो रेहडी व खोमचे लगाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे, उनके लिए यह दुख भरा सबब है कि उनके बारे में स्थान देने के लिए प्रशासन ने अभी तक नहीं सोचा है। जो परिवार हैंड टू माउथ थे, उनके लिए प्रशासन का यह कदम एक तरह से पेट पर लात मारने जैसा है। उनकी रोजी रोटी को लेकर भी प्रशासन को संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए, जैसा टेक्सी स्टेंड को लेकर किया है।
अब सवाल उठता है कि अस्थाई अतिक्रमण को लेकर जो प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की है क्या ऐसी ही कार्यवाही स्थाई अतिक्रमण करने वालों पर भी करेगा ? यह ज्वलंत प्रश्न प्रशासन के समक्ष उन असहाय रेहड़ी व खोमचे वालों का है, जिनको अपने परिवार के भरण पोषण को लेकर संकट खड़ा हो गया है। सूत्रों की मानें तो आवासीय कालोनी में प्रशासन की बिना इजाजत व्यवसायिक बहुमंजिला इमारतें बन रही है। इन भवनों के आगे पार्किंग की व्यवस्था न होना आमजन के लिए संकट का सबब है। बहुत से कोचिंग संस्थान सेफ्टी मापदंडों के बिना संचालित है। क्या यह गगनचुंबी इमारतें व कोचिंग संस्थान पर प्रशासन की नजर नहीं पड़ी है ? जब एक गरीब मजदूर की रेहडी व खोमचे प्रशासन की नजरों में अतिक्रमण है तो उक्त इमारतें अतिक्रमण की श्रेणी में नहीं आती, इसको लेकर प्रशासन की दोहरी नीति पर प्रश्न चिन्ह लगने लाजिमी है। शायद उक्त भवन उन रसूखदारो के है, जिनकी पहुंच लंबी है और प्रशासन भी उन पर कार्रवाई करने से बच रहा है। आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) ने आमजन की आवाज बनकर सार्थक पत्रकारिता की है और उसी का अनुसरण करते हुए रेहड़ी व खोमचे वालों का प्रशासन के नाम खुला पत्र है कि उनकी रोजी रोटी छीनने का काम न करें व उनको कहीं अन्यत्र स्थान प्रदान करें, जिससे वह सकून की जिंदगी का निर्वहन कर सके।