इंटरनेशनल लॉ: नेपाल में 25 देशों का वैश्विक शांति सम्मेलन, 5 भारतीय बनेंगे ग्लोबल एम्बेसेडर

AYUSH ANTIMA
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जयपुर (श्रीराम इंदौरिया): अंतरराष्ट्रीय समरसता, शांति और आपसी सहयोग को नई दिशा देने के उद्देश्य से भारत के पड़ोसी मित्र राष्ट्र नेपाल में 25 देशों के प्रतिनिधियों की सहभागिता से एक भव्य वैश्विक शांति सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। यह सम्मेलन 28 व 29 दिसंबर को नेपाल सरकार के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं वरिष्ठ न्यायविद न्यायमूर्ति परमानंद झा के सानिध्य में आयोजित होगा। कार्यक्रम का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय समरसता मंच एवं इंडो-नेपाल समरसता ऑर्गनाइजेशन के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। मंच के संयोजक एवं नेपाल के प्रथम उपराष्ट्रपति के विशिष्ट सलाहकार एडवोकेट कुलदीप प्रसाद शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारत-नेपाल के ऐतिहासिक संबंधों को और अधिक सुदृढ़ बनाना तथा “वसुधैव कुटुम्बकम्, ग्लोबल विलेज और सत्यम् शिवम् सुंदरम्” की भारतीय अवधारणा को वैश्विक स्तर पर प्रभावी रूप से स्थापित करना है। सम्मेलन के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय कानून, शांति, कूटनीति और मानवीय मूल्यों पर गहन मंथन किया जाएगा। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक पहल के तहत 05 भारतीय नागरिकों को वैश्विक शांति हेतु ग्लोबल एम्बेसेडर के रूप में मनोनीत किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है। ये ग्लोबल एम्बेसेडर विभिन्न देशों की सरकारों से शिष्टाचार भेंटकर राजनयिक संबंधों को मजबूत करेंगे तथा अंतर्राष्ट्रीय समरसता मंच की शांति यात्रा और कार्ययोजना को आगे बढ़ाएंगे। एडवोकेट शर्मा ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय समरसता मंच के कार्यालय से इस संबंध में नाम आमंत्रित किए जा रहे हैं। मंच द्वारा प्रस्तावित सूची नेपाल के प्रथम उपराष्ट्रपति कार्यालय को प्रेषित की जा रही है। चयनित नामों पर गठित चयन समिति द्वारा विचार-विमर्श कर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। मंच के नेपाल संयोजक एवं टोक्यो (जापान) में नेपाल के पूर्व राजदूत डॉ.विष्णु हरि नेपाल ने बताया कि यह पहला अवसर है, जब अंतर्राष्ट्रीय समरसता मंच को 05 भारतीयों को ग्लोबल एम्बेसेडर बनाए जाने का प्रस्ताव प्राप्त हुआ है। चयन की प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात इसकी आधिकारिक सूचना भारत सरकार के अधीनस्थ भारतीय दूतावास, काठमांडू को भी प्रेषित की जाएगी। यह सम्मेलन न केवल भारत और नेपाल बल्कि विश्व के विभिन्न देशों के बीच शांति, सहयोग और अंतरराष्ट्रीय कानून के मूल्यों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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