बढ़ती जनसंख्या देश के विकास में बाधा

AYUSH ANTIMA
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भारत की आबादी जिस तरह सुरसा का रूप धारण किए हुए हैं, जल्द ही भारत चीन को पछाड़ देगा। भारत आबादी को लेकर 150 करोड़ के क्लब की सदस्यता ग्रहण करने को लेकर तेजी से बढ़ रहा है। आबादी के हिसाब से हम बड़े होते जा रहे हैं पर जमीन के हिसाब से सिकुड़ते जा रहे हैं। यदि इस आबादी को लेकर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने का शुद्ध पानी जैसी सेवाए प्रदान करने की क्षमता रखते हैं तो इस आबादी को बर्दाश्त किया जा सकता है। देश में आज भी भूखमरी का आलम है। सरकारी आकड़ो को देखें तो देश के 80 करोड़ लोग मुफ्त राशन प्राप्त कर रहे हैं। बच्चे कुपोषण का शिकार होने के साथ ही लोगों के सामने पीने के शुद्ध पानी की समस्या भी विकट होती जा रही है। अब एक ज्वलंत प्रश्न है कि आबादी की बढती रफ्तार पर अंकुश नहीं लगाया गया तो बेरोजगारो की एक फौज खड़ी हो जायेगी। जनसंख्या में यह बेतहाशा वृद्धि अपराधो की भी जननी है क्योंकि भूख आदमी से कुछ भी करवा सकती है। यदि पिछले सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो शहरी इलाकों में कुछ कमी दर्ज की गई है। इस गंभीर समस्या को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून‌ बनाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। इसको लेकर सरकार को दो बच्चों के कानून बनाने को लेकर पहल करनी होगी। इसके साथ ही इस कानून के प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने व परिपालन करवाना भी सरकार का कर्तव्य होना चाहिए। यदि कोई भी व्यक्ति इस कानून के दायरे से बाहर जाता है तो उसे मताधिकार से वंचित करने के साथ ही सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए, परन्तु यह भी देखा गया है कि ज्यादा बच्चे वाले प्रायः शासकीय फायदों से दूरी बनकार चलते है लेकिन उन की आड़ में चालाक आदमी सरकारी फायदे उठाने में कामयाब हो जाते हैं क्योंकि आज तक सभी सरकारें उन पर मेहरबान रही है। कांग्रेस के प्रधानमंत्री ने तो यहां तक कह दिया था कि सरकार के संसाधनों पर पहला हक उन्हीं का है, जो जनसंख्या वृध्दि में अपना भरपूर योगदान देते हैं। यदि इसी हिसाब से जनसंख्या में वृध्दि जारी रही तो हिन्दू जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्र भी अल्पसंख्यक समुदाय की श्रेणी में आ जायेंगे। बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई को लेकर भी सरकारी मशीनरी को गंभीर होना होगा। अमूमन यह देखा गया है कि आखातीज पर होने वाले बाल विवाहो को प्रशासन मूक दर्शक बना देखता रहता है। बाल विवाह को लेकर भी देश में कानून हैं पर लाखों बार विवाह होते हैं। परिवार नियोजन को एक मिशन के रूप में प्रचार प्रसार करना चाहिए। धर्म के नाम पर राजनीति न होकर तार्किक व योग्यता पर आधारित शासकीय पद्धति को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाए जाने की जरूरत है।

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