मूलत: बिहार के रहने वाले बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में हुआ था। 19वी शताब्दी में स्वतन्त्रता आन्दोलन मे अग्रणी नेताओं की पंक्ति में उनका नाम आता है। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जब आदिवासियों को खदेड़ा जाने लगा तो उन्होंने जल, जंगल व जमीन बचाने के लिए विद्रोह किया व अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया। बिरसा मुंडा ने जनजाति व आदिवासियों को सम्मान दिलाने में अहम भूमिका अदा की थी, इसलिए बिरसा मुंडे को भगवान का दर्जा दिया गया। बिरसा मुंडा धरती आबा यानी धरती के पिता के रूप में विख्यात हुए। बात उस समय की है, जब ब्रिटिश हुकूमत ने भारत पर कब्ज़ा कर रखा था। देशभर में खासकर जनजातियों को औपनिवेशिक हुकूमत से बचाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लडाई शुरु की थी। अपने आंदोलन के दौरान उन्होंने अबूया राज एते जाना, महारानी राज टूडू जाना यानी अपना राज स्थापित करें रानी का राज समाप्त करें। यह नारा ब्रिटिश राज के प्रति प्रतिरोध दर्शाता था।
यदि आज के परिवेश में बिरसा मुंडा के विचार व आदर्शो का अवलोकन करें तो प्रासंगिकता नजर आती है। जल, जंगल व जमीन पर भारत की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। अवैध रूप से जंगलों की कटाई व जमीन के सिकुड़ने के साथ ही बहुत से स्थानों पर जल की उपलब्धता भी खत्म हो गई है। सत्ता में बैठे सरमायदार महापुरुषों का राजनीतिक लाभ लेने में लगे हुए हैं। इसी राजनीतिक लाभ का प्रमाण है कि नाम बदलने की परम्परा का निर्वहन करते हुए शहरी मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक कर दिया। बिहार में चुनाव है तो बिरसा मुंडा की याद हिलोरे मारने लगी व केन्द्र सरकार ने बहुत आयोजन किए। जब केन्द्र सरकार आयोजन करें तो राजस्थान इससे पीछे कैसे रह सकता है क्योंकि बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर शायद पर्ची आ गई होगी। जनहित को लेकर व जल, जंगल, जमीन को बचाने को लेकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह को आज के सरमायेदार बड़े फख्र से बखान करते हैं लेकिन भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के बावजूद सत्ता से सवाल करना व अपने हितों को लेकर आंदोलन करने वालों को देशद्रोही, आतंकवादी व खालिस्तानी का सर्टिफिकेट दे दिया जाता है। इसके साथ ही देश में धरती पुत्रों की जो हालत हैं व उनके रोज आत्महत्या करने की खबरें आती है, उस पर शायद ही सत्ता में बैठे महानुभावों का ध्यान जाता होगा। देश में चाहे सत्ता किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, सभी दलों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने वाले महापुरुषो का केवल राजनीतिक दोहन किया, उनके सिध्दांतों से उनको कोई सरोकार नहीं रहा। स्वतन्त्रता आन्दोलन के महानायक व जल, जंगल, जमीन को संरक्षण देने वाले मां भारती के महान सपूत बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) परिवार की सादर श्रद्धांजलि।