वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा में "सामाजिक समरसता के प्रतीक श्रीराम" विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन सम्पन्न

AYUSH ANTIMA
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कोटा (श्रीराम इंदौरिया): वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय में आज "सामाजिक समरसता के प्रतीक श्रीराम" विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। विश्वविद्यालय जनसंपर्क प्रकोष्ठ के सह संयोजक विक्रम राठौड़ ने बताया कि यह आयोजन मुख्य अतिथि मदन दिलावर माननीय शिक्षा मंत्री राजस्थान सरकार, प्रो.भगवती प्रसाद सारस्वत कुलगुरु कोटा विश्वविद्यालय एवं प्रो.बीएल वर्मा कुलगुरु -वीएमओयू की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.रामनाथ झा आचार्य जेएनयू दिल्ली ने अपना विशेष व्याख्यान दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रो.सुबोध कुमार ने किया। समापन परिचय डॉ.कपिल गौतम ने किया तथा स्वागत भाषण डॉ.आलोक चौहान ने और आभार प्रो.बी.अरूण कुमार ने जताया एवं कुलसचिव एमसी मीणा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी में 2 तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया, जिसमें लगभग 62 प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र पढ़े। संगोष्ठी में 90 से ज्यादा प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस अवसर पर कोटा दक्षिण के विधायक संदीप शर्मा, आरटीयू के कुलगुरू प्रो.निमित रंजन चौधरी सहित कई शिक्षाविद भी उपस्थित रहे।
उद्घाटन सत्र के उद्बोधन में प्रोफेसर झा ने भगवान श्रीराम के अनेक प्रतीकों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को पश्चिमी देशों ने बहुत नुकसान पहुंचाया, लेकिन भारत हर झटके को बरदाश्त कर उठता रहा। उन्होंने कहा कि भारत राम का देश है और यहां धर्म से ही सभी कर्म होते हैं। समरसता केवल भारत में हो सकती है।भगवान राम के चरित्र ने न केवल भारतीय चिंतन और विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले व्यक्तियों को प्रेरित किया है अपितु भारतीय संस्कृति के अविरल प्रवाह को बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा और दिशा भी प्रदान की है। राम हमारी सांस्कृतिक एकता के प्रतीक है और एक मार्गदर्शक आध्यात्मिक शक्ति है। मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब हम सभी इस धरती मां से पैदा हुए तब उंच-नीच नहीं था, लेकिन बाद में लोगों ने स्वार्थवश भेदभाव पैदा किया। सभी लोग नियम और धर्म का पालन करते थे तथा समाज में समरसता थी। उन्होंने कहा कि राम से बड़ा कोई सेवाभावी और समरसता का भाव पैदा करने वाला नहीं पैदा हुआ। दिलावर ने कहा कि एकजुट रहें और विषमताओं को दूर करें, एक अच्छा समाज बन जाएगा। आज के युवाओं को भगवान राम के आदर्शों से सीखना चाहिए और उनकी न्यायप्रियता तथा अनुशासन का अनुकरण करना चाहिए। उन्होंने हमारे राष्ट्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक नींव के रूप में काम किया है। विशिष्ट अतिथि कुलगुरु प्रो.बीपी सारस्वत ने कहा कि भगवान श्रीराम ने वंचितों समेत समाज के सभी वर्गों को जोड़ा और साथ लेकर चले सभी सामाजिक समरसता की मिसाल कायम हो सकी। भगवान राम हम सभी के आदर्श हैं और सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं एवं उनका चरित्र युवाओं के लिए अनुकरणीय है।आज के भौतिकवादी युग में विधटनकारी शक्तियों का शमन करने के लिए सामाजिक समरसता जरूरी है और युवाओं को उसका अनुसरण करना चाहिए। युवा अपने गुरू का सम्मान करें तथा मातृ व पितृ भक्ति का सहारा लेकर जीवन में आगे बढ़ें। समारोह की अध्यक्षता कर रहे वीएमओयू के कुलगुरू प्रो.बीएल वर्मा ने कहा कि यह आयोजन केवल पारस्परिक सद्भाव, समरसता और राष्ट्रप्रेम का संदेश देने वाला एक ऐतिहासिक अवसर है, जिसका उद्देश्य सनातन संस्कृति की विविध परम्पराओं को एक सूत्र में जोड़ते हुए सामाजिक समरसता, एकता और राष्ट्रभावना को सशक्त बनाना है।उन्होंने 'रामत्व' को शिक्षा के आदर्श रूप के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि "श्रीराम" केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, अपितु एक संपूर्ण शिक्षार्थी, एक आदर्श नागरिक और मर्यादित नेतृत्व के मूर्त स्वरूप हैं। राम केवल एक वैचारिक अवधारणा नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक मार्गदर्शन है, जिसे शिक्षक अपने जीवन में अपनाकर छात्रों में संस्कार,अनुशासन और मर्यादा का संचार कर सकते हैं। रामत्व शिक्षा को सजीव और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाता है।
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