स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर विशेष..........

AYUSH ANTIMA
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उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए। सत्य को हजार तरीको में बताया गया है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा। दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुने। इन विचारों से दुनिया को राह दिखाने वाले, सम्पूर्ण विश्व को गौरवशाली भारतीय संस्कृति तथा अध्यात्म का बोध करवाने वाले, प्रकांड विद्वान, युवा शक्ति के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 फरवरी 1863 में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के उद्घोष उठो को यदि देखें तो स्वामी जी उस युवा शक्ति को उठाना चाहते थे जो कि किसी भी देश के विकास का आधार स्तम्भ होती है। आज के सन्दर्भ मे उठो शब्द के अभिप्राय को समझे तो उन्होंने युवा पीढ़ी का आह्वान किया कि किंकर्तव्य विमूढ़ होकर न बैठें। साधनों का अभाव या समय का अभाव का बहाना न बनाया जाए। जो विदेशी सभ्यता का भूत सवार है व इसकी वजह से अज्ञानतावश गहरी नींद में सोते हो तो उस निद्रा का त्याग कर जागृत अवस्था में आ जाओ। जागो को लेकर उनके विचार थे कि उठने के बाद आलस्य को त्याग कर उस सोई शक्ती को जगाओ जो तुम्हें आजादी की मंजिल तक ले जा सके। जागो के पीछे उनके भाव रामायण काल के उस वृतांत से प्रेरित थे, जिसमे हनुमान जी को जामवंत ने उनकी शक्ति का अहसास करवाया था। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि उठना व जागना ही काफी नहीं है क्योंकि लक्ष्य पाने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा। बड़े लक्ष्य को पाने मे जो बाधाएं, परेशानियां आती है, उनका अटल चट्टान की तरह सामना करोगे तो पानी की तरह बाधाएं बह जायेगी। जिस लक्ष्य की बात स्वामी जी कह रहे थे, वह लक्ष्य है भारत के पुनरुत्थान का लक्ष्य, भारत के प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त करने का लक्ष्य, विश्व गुरू के रूप में सच्चा ज्ञान, मानवता का ज्ञान देने का लक्ष्य, समस्त वसुधावासिय़ो को एक ही परिवार की भांति जोड़ने का लक्ष्य, मानव का मानव के लिए या प्राणी मात्र के लिए प्रेम भरा हृदय पाने का लक्ष्य। स्वामी विवेकानंद एक भौतिक शरीर मात्र नहीं थे। वह एक ऐसा भाव, एक ऐसा विचार, एक ऐसी सोच के रूप में प्रत्येक भारतवासी की नस नस में विद्यमान है। जिन्हें महसूस कर भारत के पुनरुत्थान में भागीदारी निभाई जा सकती है। स्वामी विवेकानंद का राजस्थान की रियासत खेतड़ी जो झुन्झुनू जिले में स्थित है से बहुत गहरा लगाव था। खेतड़ी के राजा अजीत सिंह की स्वामी विवेकानंद से गहरी मित्रता थी। राजा अजीत सिंह ने स्वामी विवेकानंद को विवेकानंद नाम ही नहीं दिया बल्कि शिकागो धर्म संसद में भेजने का पूरा आर्थिक खर्चा उठाया था। स्वामी विवेकानंद ने खेतड़ी में रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर इसे पूरे विश्व में विख्यात कर दिया। खेतड़ी नरेश अजीत सिंह स्वामी विवेकानंद के सानिध्य पाने वाले राज्य के पहले राजा थे। रामकृष्ण मिशन के जरिये स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा व समाजसेवा का शुभारंभ खेतड़ी से ही किया था। हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक, भारत के अध्यात्मिक जाग्रति को पूरे विश्व में प्रचारित करने वाले, युवा शक्ति के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) परिवार की श्रद्धापूर्वक श्रध्दांजली।

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