धार्मिक उपदेश: धर्म कर्म

AYUSH ANTIMA
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तुम्हारे नांइ लागि हरि जीवन मेरा, मेरे साधनसकल नांव निज तेरा॥ टेक॥ दान पुण्य तप तीरथ मेरे, केवल नाम तुम्हारा। ये सब मेरे सेवा पूजा, ऐसा व्रत हमारा॥१॥ ये सब मेरे वेद पुरानां, सुचि संजम है सोई। ज्ञान ध्यान ये ही सब मेरे, ओर न दूजा कोई।।२।।
काम क्रोध काया बसि करणां, ये सब मेरे नामा। मुक्ता गुप्ता परगट कहिये, मेरे केवल रामा॥ ३॥
तारण तिरण नावं निज तेरा, तुम ही एक अधारा। दादू अंग एक रस लागा, नांव गहै भवपारा॥४॥
हे प्रभो ! आपके नाम का स्मरण ही मेरा जीवन है। मेरे सारे साधन जो आपका “सत्यराम" यह नाम है वह ही है। दान पुण्य तप तीर्थाटन आदि, मैं तो आपके नाम को ही मानता हूँ। सेवा पूजा भी मैं तो आपके नाम का स्मरण ही मानता हूं ऐसा मेरा व्रत है। वेद तथा पुराणों का पठन-पाठन पवित्र रहना इन्द्रिय संयम करना ज्ञान और ध्यान ये सब साधन नाम स्मरण के ही अन्तर्गत है। अत: मेरे लिये नाम स्मरण ही मुख्य साधन है। मैं तो दूसरा कोई साधन जानता ही नहीं हूँ। काम क्रोध आदि पर विजय और शरीर को वश में करना यह सब मेरे नाम जप से ही हो जाते हैं। अत: मैं तो नाम को ही जपता हूं। मेरा प्रकटधन या गुप्त धन जो
कुछ भी है, वह भी आपका नाम ही है। आपका नाम भक्तों को संसार से पार करने वाला है। आप ही मेरे जीवन के आधार है। मेरा मन तो आपके नाम का स्मरण करता हुआ आपके एकरस रहने वाले स्वरूप में ही लीन रहता है। स्तोत्ररत्नावली में लिखा है कि हे जिह्वे । हे रसज्ञे । संसार रूपी बन्धन को काटने के लिये तू सर्वदा हे गोविन्द। हे मुरारे ! हे दामोदर ! हे माधव ! इस नाम रूपी मंत्र का जप किया कर, जो सुलभ और सुन्दर है,बजिसे व्यास वसिष्ठ आदि ऋषियों को भी पता था। हे जिह्वे तू सदा ही श्री कृष्णचन्द्र के मनोहर और सब संकटों को दूर करने वाले कृष्ण दामोदर माधव आदि नामों को जपा कर। श्री वृहद्भागवतामृत में लिखा है कि-मुरारि का नाम आनन्द स्वरूप है, उस नाम की जय हो जय हो। कर्तव्य कर्मरूप वर्णाश्रम धर्म का क्लेश परमेश्वर के ध्यान धारणा का क्लेश पूजा अर्चना के लिये द्रव्यादि संग्रह का क्लेश, इनमें से कोई भी क्लेश नाम जपने वाले साधक को नहीं करना पड़ता, किसी भी प्रकार से एक वार भी नाम का उच्चारण करने पर वह सब प्राणियों के लिये परम उपकारक अमृत स्वरूप है। नाम ही मेरा जीवन वही मेरा भूषण है। मुझे अन्य किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है।

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