रे मन गोविन्द गाइरे गाइ, जनम हि विस्था जाइरे जाइ॥ टेक॥
ऐसा जनम न बारंबारा, ताथै जपि ले राम पियारा॥१॥ यह तन ऐसा बहुरि न पावै, ताथै गोविन्द काहेन गावै॥२॥ बहुरि न पावै मानुष देही, ताथै करि ले राम सने ही॥ ३॥ अब कै दादू किया निहाला, गाइ निरंजन दीन दयाला॥ ४॥ रे मन ! तू निरन्तर गोविन्द को भज। अन्यथा तेरा नर जन्म प्रतिक्षण व्यर्थ में ही चला जायगा। कोई भी व्यक्ति ऐसा दुर्लभ मनुष्य शरीर बार बार प्राप्त नहीं कर सकता। अत: तू तेरे भ्यारे राम को भज। बार बार में मैं तेरे को समझाता हूं। फिर भी तू क्यों नहीं समझता और राम को क्यूं नहीं भजता ? उनके नाम को बार बार गावो और उनको भज कर अपने जीवन को सफल बनालो, जिससे संसार में बार बार जन्म न हो। तेरे को मनुष्य शरीर देकर भगवान् ने बड़ा ही अनुग्रह किया है। उसकी कृपा के बिना ऐसा नर जन्म नहीं मिलता, अत: गोविन्द को भजो।
श्रीमद्भागवत में लिखा है कि-यह मनुष्य शरीर बड़ा ही दुर्लभ है क्योंकि अनेक जन्म जन्मान्तरों के बाद मिला है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का देने वाला है लेकिन क्षणभङ्गुर और अनित्य है। अत: बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिये कि जब तक मृत्यु के मुख में नहीं जाता, उससे पहले ही मुक्ति के लिये यत्न कर लो क्योंकि विषय भोग तो सभी योनियों में मिलता रहता है।
सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारसंग्रह में भी यही कहा है कि-दुर्लभ मनुष्य शरीर प्राप्त करके जिसमें सद् असत् का विचार किया जा सकता है। उसमें भगवान् को न भजकर केवल ऐन्द्रिय सुखों के भोगों में ही लगा रहता है तो वह मनुष्य कुमति और पुरुषों में अधम पुरुष है। उसके जन्म को धिक्कार है।