सूत्रों के अनुसार कर्नाटक सरकार फेक न्यूज़ पर शिकंजा कसने के लिए एक कानून लाने की तैयारी में है। कर्नाटक सरकार के मंत्री प्रियांक खरगे के अनुसार देश के चुनाव आयुक्त ने पहले ही कहा था कि 3M यानी पैसा (Money), ताकत (Muscle) और गलत सूचना (Misinformation) हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा है। इसको लेकर मंत्री के अनुसार इस कानून में गलत समाचारों को प्रकाशित करने पर 7 साल तक के कारावास की सजा व 10 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। अगर कोई किसी के बयान को ग़लत तरीके से पेश कर रहा है या ग़लत रिपोर्टिंग कर रहा है, उसके उपर इस कानून के तहत उचित कार्रवाई की जायेगी। मंत्री प्रियांक खरगे के अनुसार भारत ग़लत सूचना के मामले मे नंबर एक है। अब यदि उपरोक्त बातों का पोस्टमार्टम करे तो ऐसा कानून लाने की आखिर आवश्यकता क्यों पड़ी। भारत के लोकतंत्र की दुनिया में मिसाल दी जाती रही है और पत्रकारिता इस लोकतंत्र का वह स्तंभ है, जिसकी एक जमाने में मिसाल दी जाती थी कि यह खबर अखबार में छपी है। समय ने करवट ली, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया ने पैर पसारे व सबसे पहले सबसे तेज की प्रवृत्ति ने पत्रकारिता का बंटाधार कर दिया। राजनीतिक आकाओं को खुश करने का एक जीवंत उदाहरण था कि दो हजार के नोट को लेकर एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल ने कालेधन पर लगाम लगाने को लेकर कारगर बताया था, इसको लेकर उसने कहा था कि दो हजार के नोट में नैनो चीप लगी है, जो कालेधन की सूचना देगी। यह समाचार पत्रकारिता के मूल्यों के पतन की पराकाष्ठा थी तत्पश्चात यूट्यूब चैनलों ने रही सही कसर पूरी कर दी। कुछ न्यूज़ पोर्टल व यूट्यूब चेनल आरएनआई के नंबरों के बिना ही धड़ल्ले से काम कर रहे हैं। सरकारी आयोजनों में भी इन चैनल वालों व पोर्टल वालों को ही प्राथमिकता देखने को मिलती है, जो कि हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा है। ग़लत खबरें प्रकाशित करने को लेकर इसके दुष्परिणाम भी समाज में देखने को मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर एक पाकिस्तानी महिला जो अवैध तरीके से भारत मे आकर शादी कर लेती है, उसको इलैक्ट्रोनिक मिडिया ऐसे दिखा रहे थे, जैसे यह कोई राष्ट्रीय समस्या के साथ ही जनहित से जुड़ा मुद्दा हो। अब यह ज्वलंत प्रश्न भी है कि क्या कर्नाटक सरकार की तर्ज पर भारत सरकार व राजस्थान सरकार भी ऐसा कानून लेकर आयेगी, जिससे पत्रकारिता मूल्यों को बचाया जा सके। इसके साथ ही पत्रकारिता के मूल्यों से पतन को रोकने में पत्रकारिता भी अपना मुख्य किरदार अदा कर सकती है। राजस्थान की पत्रकारिता जगत के भीष्म पितामह पंडित झाबरमल शर्मा को आदर्श मानकर पत्रकारिता के मूल्यों को बचाने के साथ ही लोकतंत्र की रक्षा भी की जा सकती है। सटीक व निष्पक्ष पत्रकारिता सरकार व आमजन के बीच सेतु का काम करती है, जो सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित करने के साथ ही जन विरोधी निर्णयों का खुलकर विरोध किया जाए। यह वह दर्पण है कि जैसा चेहरा होगा, वैसा ही दिखाई देगा लेकिन इस दर्पण पर अर्थ रूपी धूल को हटाने की जरूरत है।
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