चिड़ावा (राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला): सावित्री बाई फुले को देश में पहली कन्या विद्याधन खोलने के लिए जाना जाता है। उन्होंने श्रमिकों, किसानों व मजदूरों और महिलाओं के लिए साध्य विधालय शुरु किए। जिस तरह से सावित्री बाई फुले ने समाज के वंचित वर्गों के लिए शिक्षा का प्रसार किया, उन्हीं से प्रेरित होकर हरियाणा के ह़सावास कला गांव की बेटी और चिडावा तोला सेही की बहू अनिता पूनिया ने झुग्गी बस्ती व गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। आज के इस आर्थिक युग मे जहां शिक्षा के मंदिर व्यापार का केन्द्र हो गये है व शिक्षा इतनी महंगी कर दी गई है, जो आम आदमी की पकड़ से दूर होती जा रही है। इसको देखते हुए निशुल्क शिक्षा के बारे में सोचना कोई आसान कार्य नही था। टीचर दीदी ने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया व सरला पाठशाला के नाम से शिक्षा के मंदिर की स्थापना की। शिक्षा के माध्यम से झुग्गी झोपड़ी व गरीब बच्चों को समाज की मुख्यधारा में लाने के संकल्प के साथ ही यह सोच रही है कि शिक्षा वह प्रकाश पुंज है, जो व्यक्ति को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाता है। आज सरला पाठशाला में सैकड़ों बालक व बालिकाएं शिक्षा ग्रहण कर रही है। किसी कार्य में यदि रोड़ा व व्यवधान आता है तो वह पैसे की कमी होना है लेकिन बिना अर्थ के टीचर दीदी के संकल्प को देखते हुए का कारवां बनता गया। शेखावाटी की धरा को वीर प्रसूता भूमि होने के साथ ही भामाशाहों की धरा होने का गौरव हासिल है। उनकी निस्वार्थ भाव की सोच और लग्न से प्रेरित होकर शेखावाटी के भामाशाहों ने अपने हाथ खोले। जिसमें भोजन, बच्चों की पाठ्य सामग्री, बैग, ड्रेस, कपड़े, चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवाओ के रूप में उनका भरपूर सहयोग मिल रहा है। अनीता पूनिया उर्फ टीचर दीदी का जीवन समाज के समक्ष प्रेरणास्रोत होने के साथ ही दुर्लभ उदाहरण भी है क्योंकि अर्थ युग की इस अंधी दौड़ में गरीब बच्चों को समाज की मुख्य धारा में लाने के साथ ही उनके भविष्य को संवारने का काम कर रही है। अनिता पूनिया को शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने को लेकर उनके जज्बे को देखते हुए उन्हें शेखावाटी की सावित्री बाई फुले कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
3/related/default