झुंझुनूं भाजपा नव‌नियुक्त जिलाध्यक्ष की रार को लेकर प्रदेश प्रवक्ता पर गिरी गाज

AYUSH ANTIMA
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भारतीय राजनीति संक्रमण काल से गुजर रही है। सिध्दांत विहीन नेताओ के लिए सत्ता की मलाई खाना ही जनसेवा बन गई है। भारतीय राजनीति में धनबल व बाहुबल का बोलबाला हो गया है। चुनावो में पैसे के बल पर टिकट मिलने के आरोप तो हर राजनीतिक दल पर रखते रहे हैं लेकिन सिध्दांतो की दुहाई देने वाली भारतीय जनता पार्टी पर संगठन में भी पद पैसे के बल पर मिलते हैं तो उस पर चर्चा करना जरुरी हो जाता है। अभी झुंझुनूं भाजपा जिलाध्यक्ष की नियुक्ति के साथ ही भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता सार्वजनिक मंच से आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा में पैसे वालों की ही चलती है। जब से झुंझुनू भाजपा जिलाध्यक्ष की नियुक्ति हुई है, प्रदेश प्रवक्ता सोशल मिडिया पर मुखर रूप से अपनी पोस्ट के माध्यम से लगातार विरोध प्रकट कर रहे हैं। उनकी एक पोस्ट के अनुसार किसी भी कार्यकर्ता को इज्जत तभी मिलती है जब उसके पास पैसा हो। बिना पैसे वाला कार्यकर्ता केवल भीड़ के झुंड का एक हिस्सा मात्र है। विदित हो झुंझुनूं जिले की राजनीति कांग्रेस के कद्दावर नेता स्वर्गीय शीशराम ओला के इर्द-गिर्द घूमती थी। उन पर वंशवाद के आरोप लगते रहे कि वह अपने बेटे बृजेन्द्र ओला को अपनी विरासत सौपने को लेकर प्रयत्नशील रहे थे। झुंझुनूं के आम चुनावों में भी वंशवाद की राजनीति को लेकर भारतीय जनता पार्टी बहुत मुखर रही लेकिन एक मारवाड़ी कहावत है कि डूंगर बलती दिखज्या पगा बलती कोनी दिखै। आज जब विधायक व सांसद रहे की पुत्रवधू को एक व्यक्ति एक पद के सिध्दांत को तिलांजलि देते हुए जिलाध्यक्ष का पदभार सौंपा है तो भारतीय जनता पार्टी को वंशवाद को लेकर सोचना होगा कि आखिर जिलाध्यक्ष की नियुक्ति क्या वंशवाद की श्रेणी में नहीं आती है। इसके साथ ही जिला प्रमुख रहते हुए उनकी सत्ता में भागीदारी है और इसके बावजूद संगठन में भी भागीदारी देना निष्ठावान व समर्पित कार्यकर्ताओं में तो आक्रोश होना स्वाभाविक है। वैसे भी झुंझुनूं की राजनीति आयाराम गया राम के लिए विख्यात रही है। यहां के नेता सत्ता के साथ रहना ही जनसेवा मानते हैं। निष्ठावान व भाजपा की नितियों के प्रति समर्पण भाव रखने वाले नेताओं को हासिए पर धकेल कर आयातित नेताओं को तवज्जो दी जा रही है। यहां तक कि कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पुतले का दहन करने वाले नेता भी झुंझुनूं भाजपा के स्तम्भ बनने का दंभ भरते हैं। विदित हो जब से राजस्थान में डबल इंजन सरकार का गठन हुआ है, मंत्रियों के ताबड़तोड़ दौरे इस बात का संकेत है कि झुंझुनूं का उपचुनाव जीतने के बावजूद जिले में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। नेताओं की निजी महत्वाकांक्षा के चलते भाजपा में गुटबाजी का दौर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा, बशर्ते नवनियुक्त जिलाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर प्रदेश प्रवक्ता के बयानों ने इस गुटबाजी को हवा दे दी है। प्रदेश प्रवक्ता तो इस फैसले को लेकर मुखर है ही, इसके साथ ही कार्यकर्ता भी दबी जुबान से इस फैसले के साथ नहीं है। जो नेता संगठन में पदों पर रहकर काम कर रहे थे और जिन जिलाध्यक्ष का पद के मापदंड पूरा करने के साथ ही पैनल में भी नाम था, उनकी प्रदेश नेतृत्व द्वारा अनदेखी करना निश्चित रूप से उनकी निराशा, हताशा व आक्रोश होना स्वाभाविक है, जैसा कि प्रदेश प्रवक्ता ने आरोप लगाए हैं। अब नवनियुक्त जिलाध्यक्ष के मनोनयन को लेकर झुंझुनूं की राजनीति में क्या दूरगामी परिणाम होगे, यह तो आने वाला समय ही निर्धारित करेगा।

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