वैसे तो राजनीति में भाषाई सुचिता रसातल में चली गई। कांग्रेस के नेता यदि आरोप प्रत्यारोप करें तो बात समझ में आती है लेकिन भाजपा के ही नेता अपने समर्थकों से भाषाई मर्यादा को ताक पर रखकर भाजपा के ही नेता पर निजी प्रहार करवाये तो यह उनकी हताशा व कुंठा का प्रतिक है। शेखावाटी की राजनीति में पूर्व जिलाध्यक्ष पवन मावंडिया का कद बढ़ना पिलानी विधानसभा के भाजपा नेताओं को रास नहीं आ रहा। पवन मावंडिया को ओबीसी आयोग का सदस्य मनोनीत होना इस बात का संकेत है कि पवन मावंडिया जिले में एक बड़े ओबीसी का चेहरा बनकर उभरे हैं। वैसे तो भाजपा की बात करें तो जिले में भाजपा अलग अलग ढाणियों में बंटी हुई है। नवनियुक्त भाजपा जिलाध्यक्ष के लिए इस गुटबाजी के चक्रव्यूह को भेदना होगा अन्यथा आगामी समय मे यह बीमारी लाइलाज होने वाली है। नये जिलाध्यक्ष का मनोनयन होते ही प्रदेश भाजपा प्रवक्ता उन पर हमलावर हो गये थे, उसको लेकर आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) ने अपने लेखों में इसको लेकर उनके आरोपो का क्रमवार पोस्टमार्टम किया था। देर सवेर भाजपा प्रदेश नेतृत्व को इसको लेकर संज्ञान लेना पड़ा और प्रदेश प्रवक्ता को अनुशासनहीनता का नोटिस थमा दिया लेकिन जिस तरह से पिलानी विधानसभा में नये राजनीतिक गठजोड़ पूर्व जिलाध्यक्ष व चिड़ावा पूर्व प्रधान का देखने को मिल रहा है, वह भाजपा के नेताओं को हजम नहीं हो रहा। इसको लेकर सोशल मिडिया पर अपने समर्थकों द्वारा लगातार व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं। पूर्व प्रधान पर लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी को हराने में अपनी ताकत लगाने वाले आरोप उस कुंठा को प्रदर्शित करते हैं कि उनका राजनीतिक भविष्य कही न कही अंधकारमय दिखलाई दे रहा है। यह भारतीय राजनीति की परम्परा रही है कि नेताओं की दुश्मनी कब दोस्ती में तब्दील हो जाए। यह खेमेबाजी कहीं न कहीं पिलानी विधानसभा के लिए भी शुभ संकेत नहीं कहे जा सकते। इस खेमेबाजी का ही नतीजा है कि चिड़ावा के सरकारी अस्पताल के पीएमओ के पद को फुटबाल बना दिया है, जिसका उदाहरण आवाम ने देखा। कहीं न कहीं यह खेमेबाजी क्षेत्र के विकास को भी प्रभावित कर रही है क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों को लगाने में भी इसकी छाया स्पष्ट दिखाई देती है। निजी महत्वाकांक्षा के चलते जनसेवा व जनहित के मुद्दे गौण हो गये है लेकिन यह तो आने वाला समय ही निर्धारित करेगा कि कौनसा धड़ा बाजी मारता है।
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