अखबाऱो में रोज सुर्खियां बटोरते समाचार देखने को मिलते हैं कि उक्त अधिकारी को एसीबी ने रिश्वत लेते ट्रेप किया व उक्त अधिकारी को रिश्वत लेने के आरोप में एपीओ किया। कुछ समय के अंतराल के बाद इन समाचारों को विराम लग जाता है और नेताओ की डिजायर से उक्त अधिकारीयो को फील्ड पोस्टिंग मिल जाती है। ऐसा ही एक जीवंत उदाहरण अभी राजस्थान सरकार के एक स्थानांतरण लिस्ट में ऐसे अधिकारी को पोस्टिंग मिली है, जो रिश्वत लेने के आरोप में एपीओ हो चुके थे। जैसे ही डबल इंजन सरकार का गठन हुआ, ऐसे अफसरों की पौ बारह हो गई। झुंझुनूं जिले व पिलानी विधानसभा की बात करें तो ऐसे अधिशाषी अधिकारीयो को लगाया गया, जो रिश्वत लेने के मामले में एपीओ हो चुके थे। अब यह ज्वलंत प्रश्न है कि आखिर किस नेता की डिजायर पर उन्हें लगाया गया ? उस नेता का क्या निजी हित था कि उस भ्रष्ट अधिकारी को जनता पर थोपा गया। वैसे किसी अधिकारी को अपने क्षेत्र में लगाने को लेकर डिजायर करना उस विधायक व नेता की यह मंशा होनी चाहिए कि वह जनता के लिए जनहित को सर्वोपरि रखेगा और क्षेत्र में विकास को गति देगा लेकिन आधुनिक परिवेश में यह बात गौण हो चुकी है। अब वह अधिकारीयो को लेकर डिजायर होती है तो या तो वह जातिगत समीकरण में फिट बैठते हैं या फिर उनके निजी हितों को साधने में सहायक होंगे। पेपर लीक मामले में रोज गिरफ्तारी के समाचार सुनने को मिलते हैं लेकिन यह एक ज्वलंत प्रश्न है कि कोई भी अधिकारी भ्रष्टाचार की गंगा मे गोते नहीं मार सकता, जब तक सियासत में उसका कोई गाड फादर न बैठा हो। पेपर लीक प्रकरण मे उन गाड फादर की गिरेबान तक हाथ अभी तक नहीं पहुंचे हैं। यह भारतीय राजनीति की विडंबना रही है कि एक सरपंच निर्वाचित होते ही कुछ ही महीनो में उसकी जीवनशैली में बदलाव देखने को मिलता है। सभी विलासिता के संसाधनों से भरपूर अपना जीवनयापन करने लगता है। आखिर उसकी जीवनशैली में अचानक यह परिवर्तन आना उसी बीमारी का सूचक है, जिसकी चर्चा हो रही है। एक सरपंच या नगर परिषद का सभापति बिना गाड फादर भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। हर नेता खुद को पाक साफ व जनसेवक के रूप में खुद को महिमा मंडित करता है लेकिन एक कहावत है कि सभी साहूकार है जब तक पकड़े न जाए। कोई भी राजनीतिक दल हो, भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस के दावे जरूर करती है लेकिन इसको लेकर गंभीरता नहीं दिखाती। देश के सिस्टम में भ्रष्टाचार रूपी कैंसर घर कर गया है, इसको लेकर सिस्टम में बदलाव होने के साथ ही देश के नेताओं व सरकारों को चाहिए कि दृढ़ संकल्प के साथ इसको दूर करने को लेकर काम करें। छोटी मछलियों को पकड़ कर वाहवाही न लूटे, इनको मोहरा बनाकर जो मगरमच्छ बैठे हैं, उन तक भी कानून के हाथ पहुंचने चाहिये क्योंकि एक कहावत है कि सांप को न मारकर उसकी मां को ही मारा जाए।
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