एक कहावत है दूसरे के बनाए मंदिर में जय बोलना बहुत आसान है, मजा तो तब आए कि खुद का मंदिर बनाकर जय बोली जाए। यह कहावत झुन्झुनू जिले के स्थानीय नेताओं पर बिल्कुल सटीक बैठती है। सड़क निर्माण, पेंच वर्क, सरकारी स्कूलों के लिए रख रखाव आदि किसी भी सरकार के लिए सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है। भजन लाल शर्मा की डबल इंजन सरकार आने के बाद यह देखा गया है कि जब भी उपरोक्त जनहित के कार्यों को लेकर कोई सरकारी आदेश निकलता है तो उसका श्रेय लेने के लिए स्थानीय नेता सोशल मीडिया के मैदान में कूद पड़ते हैं और फिर शुरु होता है मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा व संबंधित विभाग के मंत्री का आभार समारोह। इन नेताओं के आभार का बोझ इतना हो गया है कि मुख्यमंत्री व संबंधित मंत्री के लिए उठाना दूभर हो गया है। यदि विधायक, पूर्व विधायक या पुर्व सांसद ऐसा आभार प्रकट करता है कि उनके प्रयास का प्रतिफल है तो समझ में आया है लेकिन किसी जन प्रतिनिधि व संवैधानिक पद पर न होने वाला नेता यह दावा करें तो हास्यास्पद लगता है। विकास की सौगातों की बौछारों से जिले का आवाम इतना असमंजस में पड़ गया कि आखिर विकास पुरूष के खिताब से किस नेता को नवाजा जाए। इन स्थानीय नेताओं का विकास व जनहित की तरफ संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सूत्रों की मानें तो बैठने के लिए कमरा न मिलने के अभाव में बगड़ का पटवारी अपने बोरिया बिस्तर लेकर झुन्झुनू चले गये, अब पटवार से संबंधित काम के लिए लोगों को झुन्झुनू जाना होगा। अब एक ज्वलंत प्रश्न खड़ा होता है कि क्या तत्कालीन सरकारों में वसुंधरा राजे व अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में सड़कें, अस्पताल से स्कूल व अन्य सुविधाओं को लेकर कार्य नहीं हुए ? यदि हुए हैं तो ऐसा महिमा मंडन पहले नहीं देखा गया क्योंकि ऐसे कार्य हर सरकार की प्राथमिकता होती है और यह एक सामान्य प्रक्रिया भी है। एक मारवाड़ी कहावत है घी तो बाड़ में गेरयोडो ही दिखज्या। इसलिए सोशल मिडिया पर विकास की गंगा बहाने से परहेज़ करना चाहिए क्योंकि यथार्थ के धरातल पर होने वाले काम ही विकास का निर्धारण करेंगे। जिले के आवाम की अदालत में ही फैसले होंगे कि किस नेता के प्रयासों से कार्य हो रहे हैं। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता के हाथ में सत्ता की चाबी होती है और जनता इन नेताओं की कारगुजारी देख रही है व सही समय पर इसका जबाब भी मिलेगा।
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