अलवर (श्याम भाई): दिल्ली विश्वविद्यालय नॉर्थ कैंपस के टॉपर छात्र रहे भानू प्रताप शर्मा विदेशों में लाखों रुपए का जॉब ऑफर ठुकराकर अपने गौ धाम में देशी नस्ल के गौ वंश के संरक्षण और संवर्धन में लगे हुए हैं। हरियाणा, राजस्थान व यूपी जैसे तीन बड़े राज्यों से लगता अलवर का मेवात क्षेत्र गौ तस्करों और गौ हत्यारों के कारण पूरे देश में बदनाम है। यहां ओएलएक्स ठगों का भी गढ़ है। इसी बदनाम मेवात में डीयू टॉपर छात्र रहे युवा आइकन भानू प्रताप शर्मा को पूरे मेवात क्षेत्र के लोग गौ सेवक कह कर संबोधित करते हैं। स्कूल शिक्षा में भी अव्वल रहे भानू प्रताप ने दिल्ली विश्वविद्यालय नॉर्थ कैंपस में केमेस्ट्री से बीएससी ऑनर्स टॉप की। इसके बाद डीयू नॉर्थ कैंपस से ही रसायन शास्त्र में एमएससी कर पीएचडी डिग्री के लिए प्रवेश लेने की तैयारी के बीच ही उन्हें विदेशों से लाखों के पैकेज की नौकरी के ऑफर भी मिले पर ईश्वरीय कृपा से देशी गौ वंश के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम करने की प्रेरणा ने उन्हें विदेशों की चमक धमक से दूर रखा। संयुक्त परिवार में रहने वाले भानू प्रताप शर्मा का गौ धाम इन दिनों अनेक तरह के फूलों की फुलवारी से महक रहा है और हरियाली से लहलहा रहा है। यहां एमआईए इंडस्ट्रियल एरिया के पास हाइवे पर गौ धाम में भानू प्रताप शर्मा के पास देशी नस्ल की लगभग सभी गाय मौजूद हैं। गिर, थारपारकर, राठी, साहीवाल, काकरेज, चोलिस्तानी आदि देसी नस्लों की गायों की चहल कदमी से गौ धाम में दिन भर बृज धाम सा नजारा देखने को मिलता है। मधुर संगीत और गौ माताओं का प्रसन्न होकर रंभाना गौ धाम की शोभा को चार चांद लगा देता है। छह साल पहले देशी नस्ल की ग्यारह गायों से गौ सेवा के क्षेत्र में नवाचार की शुरूआत करने वाले गौ सेवक भानू प्रताप के पास अब गौ माताओं की संख्या करीब सौ हो गई है। कोरोना जैसी महामारी और उसके बाद देशी नस्ल की गायों में देश भर में फैले जानलेवा लंपी रोग से गौ वंश को भारी नुकसान पहुंचा था। संसार भर में मनुष्यों और गायों पर वर्षों जानलेवा रोग का साया रहा, ऐसे में गौ सेवक भानू प्रताप ने सेवा का मैदान नहीं छोड़ा। वे मानते हैं कि गाय का संबंध वेदों से लेकर विज्ञान तक है, जिसे हम समझ लें तो मानव मात्र का कल्याण निश्चित है। देसी गाय के दूध व घी में ही वो औषधीय गुण हैं, जो हमारे छोटे से बड़े अनेक शारीरिक विकारों को ठीक करने में सक्षम है, मां के दूध की तरह सुपाच्य है व आज के मिलावटी खानपान में भी पाचन तंत्र को सुचारू और शरीर को ताकत प्रदान करने वाला है। गाय का गोबर भी एक बड़ा खजाना है। गाय के गोबर को सुखाकर व पीसकर पाउडर बना लिया जाए तो समझिए कि लॉटरी हाथ लग गई। यह पाउडर अनगिनत तरह के उत्पाद बनाने में सहयोगी है। धूप बत्ती, हवन सामग्री, दीपक, मूर्तियां, कार्डबोर्ड, जैविक पेंट से लेकर एंटी रेडिएशन चिप तक सब कुछ बनाया जा सकता है। केमिकल युक्त फसल, फल व सब्जियां घातक बीमारियों को न्योता देती हैं। देसी गाय के गोबर से निर्मित जैविक खाद, वर्मी कंपोस्ट हमारी फसलों को गैर रसायनिक करने में सक्षम है। गौ सेवक भानू ने अपने गौ धाम पर यह सब करना शुरू कर दिया है। गौ सेवक भानू का मानना है कि आज गौवंश को अर्थ व्यवस्था से जोड़ना बहुत जरूरी है। हम अगर गौ उत्पादों को पूरी क्षमता से जीवनशैली में ले आएं तो हम देश में लाखों रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं। तकनीकी शिक्षा से जुड़े युवा भी अनेकों रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकते हैं। हमें प्रयास करके समाज के आइकन माने जाने वाले लोगों को भी गौ पालन करने के लिए प्रेरित करना होगा। यह करने से जन मानस में गौ पालन करने की प्रेरणा बहुत गति से प्रसारित होगी। आज के समय की जरूरत है कि गौमाता को सनातन की शक्ति के साथ साथ विज्ञान की धरोहर भी बनाना होगा तभी हमारे देश में परिदृश्य बदलेगा और एक भी गौवंश बेसहारा और बदहाल नही रहेगा। उस दिन हम पूर्ण रूप से विश्व गुरु कहलाएंगे और हमारा देश गौ राष्ट्र के रूप में सुशोभित होगा।
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