सनातनी संस्कृति से विमुख होता समाज

AYUSH ANTIMA
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हर सनातनी के आराध्य देव हैं। इनको किसी विशेष बंधन में बांधने का प्रयास नहीं होना चाहिए। सनातन धर्म को लेकर बहुत सी भ्रांतियां सुनने को मिलती है लेकिन सनातनियों को जातियों में बांटकर और कुछ विशेष जातियों को प्रोत्साहन देकर सनातन धर्म को कमजोर करने की नाकाम कोशिश देखने को मिलती है। रामायण काल हमारे सनातन समाज के समक्ष एक ऐसा अनुकरणीय उदाहरण है कि यदि हम भगवान राम के आदर्शों को अंगीकार कर ले तो एक असंख्य मंदिरो के निर्माण की जरूरत नहीं, भारत देश ही एक मंदिर का रूप ले लेगा। सुर्यवंश‌ में  जन्मे भगवान राम को विष्णु का अवतार माना जाता है। आज जो दलित, महादलित का शोर सुनाई देता है, उनको भगवान राम के उस चरित्र से शिक्षा लेनी चाहिए कि निषादराज को अपना दोस्त व सबरी के झूठे बैर का स्वाद भी जातिवाद से उपर उठकर उन्होंने चखा था। मित्रता की वह मिशाल कि सुग्रीव से मित्रता कर मानवता का परिचय दिया। भगवान राम के मंदिर को लेकर जो जय जयकार करते हैं, क्या उनके चरित्र मे पिता की आज्ञा का पालन कर राजपाट छोड़ने का संकल्प है, जो आज बंटवारे को लेकर एक एक इंच जमीन के लिए भाई भाई से लड़ने के साथ ही माता पिता को भला बुरा कहने में शर्म महसूस नहीं करते हैं। उनको लक्ष्मण जैसा भाई का चरित्र व भरत जैसा त्याग दिखाई नहीं देता, जिसने चौदह वर्ष तक राज सिंहासन पर भगवान राम की खड़ाऊ रखने का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। हमारे सभ्य समाज में परिवार के सदस्यों के साथ मर्यादित संबंधों के उच्चतम आयाम भी रामायण काल में देखने को मिलते हैं। आज वृद्ध आश्रमों की भरमार, महिलाओं पर अत्याचार, जातिवाद का जहर, मानवीय मूल्यों का ह्रास देखने के बाद भी हमे यह सुनने को मिलता है कि सनातन धर्म संकट में है लेकिन उनको शायद इस बात का आभास नहीं कि सनातन धर्म न तो संकट में था, न है और न ही भविष्य में रहेगा। जो इस तरह की बातें करते हैं, उनका वजूद खतरे में है, जिसको बचाने के लिए भगवान श्रीराम को ढाल बना रहे हैं। धार्मिक रूप से असंतुलन की बात करने वालों को यदि इसको लेकर इतनी ही चिंता है तो देश में दो बच्चों का कानून बनाने के साथ ही दो से ज्यादा बच्चे होने पर मतदान के अधिकार से वंचित करने के साथ ही सभी सरकारी सुविधाओं पर रोक लगा दी जाए। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की आड़ में निजी स्वार्थ की पूर्ति से बाज आना चाहिए व भगवान श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में अंगीकार करने का साहस होना चाहिए तभी हम छाती ठोककर सनातनी होने का दावा कर सकते हैं ।

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