हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

AYUSH ANTIMA
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पत्रकारिता भारतीय लोकतंत्र का वह स्तंभ है, जो सरकार व आमजन के बीच सेतु का काम करता है। पत्रकार की लेखनी का यह नैतिक दायित्व होता है कि सरकार की ग़लत नितियों का विरोध करें व जन कल्याणकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने के साथ ही आमजन की आवाज बनकर लेखनी को मूर्तरूप दे। सटीक, निष्पक्ष व सच्चाई को उजागर करने वाली पत्रकारिकता को लेकर एक कवि के उदगार है, जो आज के परिवेश में पत्रकारों के लिए नजीर है। कहिए सच और लिखके सच, चिन जाइए दीवार में। इक इजाफ़ा और हो इतिहास के संसार में।। क्या करोगे तुम फ़रिश्ता बनके, इंसाँ ही रहो। कोई कमजोरी भी होनी चाहिए किरदार में।। राजस्थान की पत्रकारिता जगत के भीष्म पितामह पंडित झाबरमल शर्मा, जिनकी प्रेरणा से पत्रकारिता की तरफ रूख किया। उनकी बेबाक पत्रकारिता की झलक जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखना एक अपराध था। उस काल में पंडित जी ने कलकत्ता से निकलने वाले हिन्दी समाचार पत्र कलकता समाचार में अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से अंग्रेजो के काले कानून रोलन एक्ट का विरोध किया। उनका यह विरोध अंग्रेजी हुकूमत को नागवार गुजरा और उन्हें धमकी मिली कि मारवाड़ी जहां से आये है वहीं भेज दिये जायेंगे। अगले ही दिन अपने संपादकीय लेख गवर्नर का ग़ुस्सा शीर्षक में तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की तत्पश्चात अंग्रेजी हुकूमत ने दो हजार रूपए की जमानत की मांग की। पंडित झाबरमल शर्मा ने जमानत देना उचित नहीं समझा और अखबार का प्रकाशन ही बंद करना उचित समझा। धमकी के आगे लेखनी को नतमस्तक करना उनकी नजरों में पत्रकारिता के साथ अन्याय करना समझा। यह वह युग था, जब पंडित झाबरमल शर्मा जैसे पत्रकारिता के स्तम्भ व भीष्म पितामह ने पत्रकारिता के मूल्यों को जीवंत रखा व उच्चतम आयाम की पराकाष्ठा थी। समय ने करवट बदली व सरस्वती पुत्रों पर लक्ष्मी पुत्र हावी हो गये व पत्रकारों की लेखनी में स्याही उनके अनुसार डलने लगी। लोकतंत्र का यह मजबूत स्तम्भ अर्थ के बोझ के नीचे दब गया व नेताओं के महिमा मंडन को ही पत्रकारिता के आयाम समझने लगे। समाज में संस्कारों का बीजारोपण उच्च स्तर का साहित्य ही कर सकता है। सरस्वती के मंचों से फूहड़ता का प्रदर्शन को ही साहित्य का नाम देने लगे। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर शुभकामनाएं प्रेषित करना ही सार्थक नहीं बल्कि इस प्रतिस्पर्धा के चलते पत्रकारिता के मूल्यों को बचाना ही लेखनी का धर्म होना चाहिए। पत्रकारिता के आइने पर अर्थ की धूल जमने से यह धूमिल हो चुकी है। इस धूल को अपनी सार्थक, निष्पक्ष व सटीक लेखनी के माध्यम से हटाना जरूरी है। हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर सरस्वती के उन पुत्रों को जो निर्भीकता से कलम के साथ न्याय कर रहे है, उनको हार्दिक शुभकामनाएं ।

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