जयपुर (महेश झालानी): लगता है कुछ अफसरों ने सरकार को बदनाम करने और जनता की आंखों में धूल झोंकने की सुपारी ले रखी है। इन्ही में एक अफसर है वैभव गैलरिया। पहले इन्होंने जेडीसी रहते जयपुर शहर का कबाड़ा किया और अब प्रदेश का कबाड़ा करने पर आमादा है। मजे की बात यह है कि नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा भी गैलरिया जैसे अफसरों के इशारों पर कत्थक करने को विवश इसलिए है क्योंकि उनको नगरीय विकास विभाग की एबीसीडी भी नही आती है। नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा बिना अपनी अक्ल लगाए जयपुर में नई नई आवासीय योजना लांच कर झूठी वाहवाही लूट रहे है। खर्रा ने जयपुर में बिना सोचे समझे तीन आवासीय योजना गंगा विहार, यमुना विहार और सरस्वती विहार लांच कर जनता की जेब पर डाका डालने का कार्य किया है। इससे कुछ महीने पहले भी तीन और आवासीय योजनायें लागू की गई थी। योजना लागू करना बुरी बात नही है लेकिन जेडीए को पहले अपनी पुरानी योजनाओ को न केवल विकसित करना चाहिए बल्कि उनकी सुध भी लेना आवश्यक है। जेडीए द्वारा रोहिणी, पार्थ, अभिनव विहार जैसी अनेक योजनाएं लांच की गई थी लेकिन आज उनकी ओर कोई झांकने वाला तक नही है। जेडीए की लापरवाही और उदासीनता के चलते ये योजनायें खण्डहरों में तब्दील होकर रह गई है। जेडीए द्वारा भूखण्डों की जो कीमत रखी गई है, वह प्राइवेट कॉलोनाइजर के मुकाबले बहुत ज्यादा है। लोग जेडीए के नाम पर भूखण्ड तो खरीद लेते हैbलेकिन बाद में पीटते है अपना माथा। कोई बताने वाला नही है कि रोहिणी या अभिनव विहार जैसी योजना भूतहा क्यो बनी हुई है। जब जेडीए ने भूखण्डधारियो से बाजार मूल्य से ज्यादा राशि ली है तो उनका विकास क्यो नही ?
हकीकत यह है कि जेडीए में व्यवहारिक दृष्टि से कोई सोचने वाला नही है। खर्रा जयपुर विकास के प्रति पूरी तरह पैदल है, जबकि वैभव गैलरिया का मकसद विकास के बजाय कुछ इतर है। बीजेपी वाले भी यह स्वीकार करने में नही हिचकिचाते है कि जो विकास शांति धारीवाल ने किया है, वह किसी भी नगरीय विकास मंत्री ने नही किया। खर्रा भी प्रताप सिंह सिंघवी, राजपाल सिंह शेखावत, श्रीचन्द कृपलानी, बीड़ी कल्ला आदि की तरह फ्यूज बल्ब साबित हो रहे है। इस हकीकत से कोई इनकार नही कर सकता है कि जेडीए अफसरों के लिए दूध देने वाली गाय है। मंजू राजपाल ने जेडीसी रहते हुए बेहतर काम किया। वे और कोई काम करती, उससे पहले ही उन्हें रुखसत कर दिया गया। आनंदी को ईमानदारी का अजीर्ण है तो सचिव निशांत जैन पूरी तरह से निष्प्रभावी है। यही वजह है कि जेडीए में कामकाज ठप्प पड़ा हुआ है तथा भ्रष्टाचार चरम पर है। जेडीसी और सचिव को फील्ड के बारे में बहुत जानकारी नही है। इसलिए जोन नम्बर 8, 9, 11 और 5 आदि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए है। मुख्यमंत्री के इलाके का काम ठेठ से ठप्प पड़ा हुआ है। न सड़को का विकास हो रहा है और न ही बुनियादी सुविधा मुहैया कराई जा रही है। डायरेक्टर इंजीनियरिंग देवेंद्र गुप्ता को विकास से कोई मतलब है नही। इसके अतिरिक्त सीएम के इलाके में भूमाफिया पूरी तरह हावी है। आईजी कैलाश विश्नोई के पास स्टाफ का अभाव है, इसलिए सैकड़ो बीघा सरकारी जमीन पर भूमाफियाओं ने अपने पांव जमा रखे है। अवैध निर्माण जेडीए की आवश्यक परम्परा है।
हकीकत यह है कि जेडीए में बिल्डर हावी है। पैसे दो और योजना पास कराओ। महिमा, मंगलम, गोकुल कृपा, वीआरबी, रियासत, सुभाशीष आदि ग्रुप जेडीए का संचालन कर रहे है। अफसर केवल ठप्पा लगाने का काम कर रहे है। जेडीए में डीसी की पोस्टिंग की न्यूनतम शुल्क 25 से 50 लाख है। पांच लाख तो सिपाही दे देता है जेडीए में आने के। किये गए इन्वेस्टमेंट पर 50 फीसदी वसूली तो कायदे से बनती ही है। नगरीय विकास विभाग की कमान अखिल अरोड़ा जैसे व्यवहारिक और दूरदृष्टि वाले अफसर को देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जेडीसी पद पर ईमानदार के साथ साथ प्रभावी अफसर को लगाया जाना चाहिए। खर्रा की नगरीय विकास विभाग में कोई उपयोगिता नही है। बेहतर होगा इस विभाग की कमान दीया कुमारी को सौपी जा सकती है।