हैवानियत, दरिंदगी, बलात्कार, चीरहरण, पशुता क्या है ये सब ? कब तक सहन करती रहेंगी लड़कियां, बच्चियां कहीं तो इसका अंत होना चाहिए। सोचा भी न था इतना गिर जाएगा इंसान, हैवानियत पर उतर आया है, क्या हो गया है, इतनी दरिंदगी खून खौल उठता है। दिन प्रतिदिन इस तरह की दिल दहला देने वाली खबरें और तस्वीरें देखते और पढ़ते हैं तो शर्मसार हो जाती हैं हम नारियां। चाहे वो अजमेर ब्लैकमेल कांड हो या कोलकात्ता की मासूम डॉक्टर, जिसके रेप पर भी बहसबाजी और राजनीति हो रही थी या मणिपुर की उस घटना ने जो बीच सड़क पर बलात्कार करना, फिर निर्वस्त्र कर शहर में घुमाना शर्मसार कर दिया था। इस घटना ने जाने कितनी निर्भया ? दरिंदो एक बार भी ना सोचा तुम पापियों ने इस जघन्य काम को अंजाम देते हुये, यही तुम्हारी मां-बहन बेटी के साथ.....लिखते हुए शर्मसार हो रही हूं। काश कोई तो मर्द होता, जो सामने आकर उसकी लाज बचाता और वो शर्मसार होने से बच जाती। आज छोटी-छोटी बच्चियां तीन-चार साल की स्कूल और घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं, इसका दोषी किसे माना जाए। उस न्याय की कुर्सी पर बैठे जज साहब का क्या ही कहूं, जिनको बच्ची की दिली चींखें भी सुनाई ना दी, उसकी सिसकती, कांपती आत्मा को तो क्या पहचानेंगे, क्योंकि उनकी संवेदना तो मर चुकी है क्या न्याय किया है, बस छू ही तो लिया था, हाथ ही तो बढ़ाए थे, बस नाड़ा ही तो तोड़ा था, कहीं घाव नहीं है, रक्त नहीं बहा तो ये अपराध नहीं माना जाएगा। बस छूना कहकर तो आप न्याय नहीं कर रहे, क्या यही इंसाफ है ?
अगर उनकी अपनी बच्ची के साथ यही हुआ होता तो क्या फिर भी यही कहते अपराधी का इरादा गलत नहीं था। छोटी सी बच्ची का डर से सहमा, कांपता शरीर, क्या बीती होगी उस पर, क्या अभी भी वह अपराधी सजा के काबिल नहीं है तो ऐसे कानून को क्या कहेंगे ? इस बर्बरता को जल्दी ही रोकना होगा और सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लगता है अब नारी को दुर्गा का रूप धारण कर दिखाना होगा, उन नामर्द दरिंदों को की नारी किसी से कम नहीं। शायद फिर इंसान रुपी जानवर भेड़िया ना नोचे किसी अबला या नन्ही कली को। ये सब तभी संभव है, जब तक हमारा प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठाए और फैसला लेने में कोताही नहीं बरतें।