आखिर भाजपा जिलाध्यक्ष के लिए विप्र समाज वंचित क्यों

AYUSH ANTIMA
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भाजपा अपना संगठन‌ पर्व मना रहा है। करीब करीब जिलों मे जिलाध्यक्ष के नाम की घोषणा हो चुकी है लेकिन झुन्झुनू जिले में जिलाध्यक्ष को लेकर असमंजस की स्थिति है। हालांकि संगठन मे मनोनयन भाजपा का विशेषाधिकार है लेकिन विप्र समाज के राष्ट्रीय संगठन अखिल भारतीय ब्राह्मण परिषद (रजि) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते जिस तरह से सत्ता से दूरी के बाद संगठन में भी विप्र समाज को उचित प्रतिनिधित्व न मिलने को लेकर विप्र समाज में आक्रोश की भावना देखने को मिल रही है। वैसे चुरू जिले में जिलाध्यक्ष को रिपीट किया गया है। झुंझुनू जिले में वर्तमान जिलाध्यक्ष बनवारी लाल सैनी का स्वर्णिम कार्यकाल कहा जा सकता है क्योंकि इनके कार्यकाल में झुंझुनूं उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के अजेय दुर्ग को ध्वस्त कर ऐतिहासिक विजय हासिल की थी। किसी भी विजय में कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है लेकिन जब टीम का सरदार बनवारी लाल सैनी जैसे हो, जिन्होंने एक सोची समझी रणनीति के तहत सबको साथ लेकर चले और जो पूर्व जिलाध्यक्ष के समय संगठन में गुटबाजी पनपी थी, उस पर अपने कुशल नेतृत्व से लगाम लगाने का काम किया व सभी को एकजुट कर विजय का शंखनाद किया। इस उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद उनके रिपीट होने में उम्र बैरियर का काम कर रहा है। अब यदि जिले में जातीय समीकरण की बात करें तो राजपूत, जाट, गूर्जर समाज से सत्ता में भागीदारी कर रहे हैं लेकिन विप्र समाज को सत्ता में भागीदारी से वंचित करने के बाद संगठन से भी दूर रखने की कवायद देखने को मिल रही है जबकि विप्र समाज जनसंघ के समय से ही भाजपा का कोर वोट बैंक रहा है। इसको लेकर भाजपा प्रदेश नेतृत्व को गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि जिलाध्यक्ष के लिए विप्र समाज को प्राथमिकता दी जाए। इसके लिए राकेश शर्मा बगड़, जिला भाजपा उपाध्यक्ष विकास शर्मा, लोटिया प्रदेश कार्यसमिति सदस्य व संघ पृष्ठभूमि से आते है, योगेन्द्र मिश्रा जिला महामंत्री, ललित जोशी मंडल उपाध्यक्ष, महेश बसावतिया वरिष्ठ भाजपा नेता‌ के नामों में से किसी एक नाम पर मुहर लगाकर विप्र समाज के आक्रोश को शांत किया जा सकता है। उपेक्षित विप्र समाज की जिलाध्यक्ष को लेकर सशक्त व प्रबल दावेदारी को प्रदेश नेतृत्व को गंभीरता से लेने की जरूरत है। इसके साथ ही प्रदेश नेतृत्व व मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से शालीनता पूर्वक मांग है कि विप्र कल्याण बोर्ड का पुनर्गठन तुरंत प्रभाव से किया जाए। प्रदेश में हर जाति के कल्याण बोर्ड का पुनर्गठन हो चुका, आखिर विप्र कल्याण बोर्ड के पुनर्गठन में देरी क्यों हो रही है। इसको लेकर सरकार व संगठन को इच्छाशक्ति दिखाते हुए ऐसे विप्र बंधु को बोर्ड की कमान सौंपे, जो विप्र समाज के लिए समर्पण भाव रखें और उसके कल्याण के लिए सोच के साथ काम करें।

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