दादू चिंता राम कौ,समरथ सब जाणे। दादू राम संभालि ले,चिंता जनि आणे।। संतशिरोमणी महर्षि श्रीदादू दयाल जी महाराज कहते हैं कि परमात्मा सर्व समर्थ सर्वज्ञ है। अतः भक्तों की सब प्रकार की चिंता भगवान को है। भक्त को चाहिए कि सभी चिंताओं से निर्मुक्त होगा प्रभु का ही चिंतन करें, योगक्षेमादिक का नहीं। स्कंदपुराण में लिखा है कि चिंता करने से ज्ञान, बल, बुद्धि नष्ट हो जाते हैं। अतः चिंता को त्यागो, चिता ओर चिंता दोनों समान है। फिर भी चिता से चिंता अधिक मानी गई है क्योंकि चिता तो निर्जीव को जलाती है और चिंता जीते हुए को ही जला डालती है। महात्मा कविवर संत श्रीसुंदरदासजी महाराज ने कहा है मानव धैर्य के साथ निरंतर विचार कर की, जिसने तेरी सृष्टि की है। वह स्वयं तुझे भोजन देने के लिए अपने आप आएगा। प्राण धारण करने के लिए शरीर को जितनी भूख उतने खाद्य को तो अनायास प्राप्त कर लेगा।
हां, यदि तू अपने मन में व्यर्थ की तृष्णा पालेगा, ऐसे तो भाई! समस्त संसार का खाद्य भी तेरे सम्मुख रख दिया जाए, तब भी तेरा पेट नहीं भरेगा। अतः हे मनुष्य! चिंता से निर्मुक्त होकर विश्वासपूर्वक भगवान का भजन कर ,वह सर्वचिंताहरण है।