अलवर (मनीष अरोडा़): हिंदू धर्म में प्रत्येक त्यौहार पुरातन परंपराओं से जुड़ा हुआ है और अगर थोड़ा गहराई में जाए तो प्रत्येक त्यौहार को मनाने का कोई ना कोई औचित्य आवश्यक रूप से होता है। शीतला अष्टमी पर बनाए जाने वाला यह त्यौहार प्रमुख रूप से शीतला माता की पूजा अर्चना का दिन होता है, जिसमें महिलाएं इस दिन उपवास रखती है और एक दिन पहले बनाया गया बासा भोजन करती है। इसको मनाने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि जैसे ही गर्मी का मौसम प्रारंभ होता है तो यह त्यौहार यह संकेत देता है कि अब गर्मी के मौसम के चलते बासा भोजन खाना बंद कर दे और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखें, जिससे कि संक्रामक बीमारियां निकट ना आए।
मुख्यतः हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई मनोवैज्ञानिक तथ्य छुपा है। अलवर और आसपास के क्षेत्र में बासोड़ा पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया। गुरुवार सुबह करीब 4 बजे से ही शीतला माता मंदिर पर महिलाओं का आना जाना शुरू हो गया और यह दौर करीब दोपहर 12 बजे तक चला। महिलाओं ने शीतला माता की पूजा अर्चना कर अपने परिवार की सुख शांति की कामना के लिए प्रार्थना की। एक मान्यता के अनुसार शीतला माता को मां पार्वती का रूप जाना जाता है और महिलाएं उनसे अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए शुभ मनोकामनाएं मांगती हैं। उल्लेखनीय है कि प्राचीन समय में भले ही जनसंचार के इतने साधन नहीं थे लेकिन शास्त्रों में दिए गए हर व्रत और त्यौहार हर मौसम के हिसाब से अपना एक अलग महत्व रखते हैं। इसी के चलते शीतला अष्टमी को मनाया जाने वाला बासोड़ा का त्यौहार भी गर्मी के शुरू होने के संकेत देता है और स्वच्छता रखना और संक्रामक बीमारियों को दूर करने के लिए मानव मात्र को सावधान भी करता है।