देश में भ्रष्टाचार हमारे सिस्टम का हिस्सा बन चुका है। इसमें नौकरशाही का विशेष योगदान रहता है लेकिन भ्रष्टाचार बिना गाड फादर संभव नहीं हो पाता। इसके लिए सत्ता में बैठे सत्तासीन महानुभावों का वरदहस्त होता है। भ्रष्टाचार को लेकर ज्यों ही चुनाव आते हैं तो यह जिन्न बोतल से बाहर आ जाता है और उन सरकार के नेताओं व मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोपो की बौछारें शुरू हो जाती है। भ्रष्टाचार रूपी कैंसर की बीमारी की यदि बात करें तो राजस्थान विधानसभा में किए गये भ्रष्टाचार का भाजपा सरकार का आलाप कोई नया नहीं है। बजट अधिवेशन में भी नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया तो पूर्व नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने चुनौती देते हुए कहा कि जब से भाजपा सरकार बनी है, उन पर सैकड़ों बार भ्रष्टाचार के आरोप को दोहराया जा चुका है। यदि भ्रष्टाचार किया है तो जांच करवाने में देरी क्यों हो रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा में हिम्मत है तो उनके खिलाफ जांच करें। धारीवाल बहुत बार भाजपा सरकार को चुनौती देते रहे है। यदि भ्रष्टाचार हुआ है तो जांच करवाने में देरी क्यों हो रही है, अभी तक जांच क्यों नहीं करवाई गई। इसी क्रम में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर बहुत बार कह चुके हैं कि कांग्रेस राज में शिक्षा विभाग मे जो भ्रष्टाचार हुआ है, उसको लेकर डोटासरा को जेल जाना होगा लेकिन भजन लाल शर्मा सरकार ने इन दोनों मामलों को लेकर जांच का अभी तक खुलासा नहीं किया है। अब सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार को लेकर कार्यवाही करना सरकार के बस की बात नहीं तो बार बार इस तरह के आरोप लगाकर सुर्खियां क्यों बटोरी जा रही है जबकि शांति धारीवाल व गोविंद सिंह डोटासरा बार बार सरकार को जांच के लिए चुनौती देते नजर आ रहे हैं। राजनीती की इस काली कोठरी में भ्रष्टाचार रूपी काले रंग से शायद ही कोई राजनेता वंचित रहा हो। भ्रष्टाचार हमारे सिस्टम का एक अंग बन चुका है और इस भ्रष्टाचार रूपी गंगा में सब गोते लगा रहे हैं। यदि गृह जिले झुंझुनूं की बात करे तो भाजपा सरकार के गठन होते ही जिले में उन भ्रष्ट अधिकारियों को लगाया गया जो भ्रष्टाचार में ट्रेप हो चुके थे। जिन भाजपा के स्थानीय नेताओं की डिजायर पर यह अधिकारी लगाए गये, क्या यह अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना नहीं है ? भ्रष्टाचार को लेकर भजन लाल शर्मा की अगुवाई वाली सरकार को आरोप लगाने के बजाय संवेदनशीलता का परिचय देते हुए बार बार आरोप लगाकर किरकिरी से बचें व यदि भ्रष्टाचार हुआ है तो जांच करें, उससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा अन्यथा यही कहा जा सकता है कि हमाम में सब नंगे हैं ।
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