गिरवरनाथ महाराज के लिये 06वीं निशान पदयात्रा रवाना

AYUSH ANTIMA
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कोटपूतली (रमेश बंसल मुन्ना): निकटवर्ती ग्राम पवाना अहीर में बाबा दामोदर दास स्थल से संत गिरवरनाथ की 06वीं पदयात्रा गुरु गोरखनाथ योगाश्रम नांगल नटाटा (आमेर कुंड) के लिये रवाना हुई। सेवक रामस्नेेही दास ने झंडा उठाकर पदयात्रा को रवाना किया। जिसमें दस ट्रैक्टर सामान के साथ सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गाजे-बाजे के साथ पदयात्रा शुरू की। पदयात्रा के 11 मार्च को पहुँचने के बाद फाल्गुन उत्सव, भंडारा एवं सत्संग का आयोजन होगा। भक्तजन हाथों में गोरखनाथ महाराज का ध्वज लिये जयकारों के साथ रवाना हुये। पदयात्रा का जगह-जगह श्रद्धालूओं द्वारा पुष्प वर्षा कर स्वागत किया गया। तीन दिवसीय यात्रा में पदयात्रियों के लिये रहने खाने, चिकित्सा समेत अन्य सुविधायें नि:शुल्क की गई है। पदयात्रियों के लिये विक्की होटल पर जलपान की व्यवस्था, रामसिंह यादव ने भोजन की व्यवस्था, संयोजक जयराम वर्मा जनता सेवा समिति विराटनगर ने जलपान की व्यवस्था की। पदयात्रा में पवाना अहीर मंडल अध्यक्ष प्रकाश चन्द्र यादव, शिव शंकर स्वामी, किशोरी लाल सैनी, मुलचन्द्र ड्राईवर, अनिल, लीलाराम यादव, मामराज योगी, रामनिवास यादव, बलराम यादव, अशोक योगी, सुरेश आर्य, रामसिंह यादव, मूलचंद यादव, महेश यादव, धर्मेंद्र योगी, मनोज बागोरिया, सोनू सिंह, जीतू गुरु, महिला मंडल कृष्णा सैन, फूली देवी, माफी देवी, मिश्री देवी समेत सैकड़ों महिलायें शामिल हुई। उल्लेखनीय है कि पवाना अहीर की पावन भूमि में जोगी परिवार में जन्मे गिरवरनाथ तपस्वी, शिक्षित तथा भजनानंदी संत हैं। प्रवक्ता रामकरण यादव ने बताया कि बाबा धौंकलनाथ, बाबा छोटूनाथ, बाबा खेतानाथ और बाबा भगवान नाथ का सानिध्य प्राप्त बाबा जयरामनाथ संत गिरवरनाथ के गुरु थे। सन् 1984 में मनोहरपुर में कक्षा 11 वीं में संस्कृत शिक्षा प्राप्त करते हुये वहीं पर नदी किनारे तपस्या में लीन हो गये। उसके बाद छापुर आश्रम में रहे, इसके बाद देशाटन कर कुछ वर्ष तक आगर (थानागाजी) खोले में रहते हुये अनुष्ठान कर स्थान बनाया। इसके बाद टोडा में भी तपे। बाद में नांगल नटाटा आमेर नदी में तपस्यारत रहे। वहां एक स्थान गौरखनाथ के नाम से बनाया। सोता नदी के किनारे स्थित पवाना अहीर की पावन भूमि से जन्म लेने और विभिन्न क्षेत्रों में अपने सुविचारों से जनता का कल्याण कर लाभ पहुंचाने वाले संत गिरवरनाथ के दर्शनार्थ काफी दूर दूर से शिष्य आकर दर्शन करने आते हैं।

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