दादू सब बातन की एक है,दुनिया तै दिल दूरी। साईं सेती संग करि, सहज सुरति लै पुरि।।
सन्तप्रवर श्रीदादू जी महाराज कहते हैं कि सार का यह ही उपदेश है कि, इस संसार में कहीं भी किसी से भी आसक्ति ना करो क्योंकि स्नेह करने वाले को दिन-रात जलना पड़ता है। अतः सत्कर्म करते हुये परमात्मा से प्रेम करना चाहिए और अपने मन की वृति को भी उसी में लीन रखना चाहिए। श्रीमद्भागवत में लिखा है कभी भी किसी के साथ सदा ज्यादा संबंध और स्नेह नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर कबूतर की तरह दीन होकर संताप उठाना पड़ता है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि सर्वत्र स्नेह को त्याग कर शुभ अशुभ की प्राप्ति में न ज्यादा प्रसन्न होता तथा अशुभ से द्वेष नहीं करता हो, उस मनुष्य की बुद्धि स्थित मानी गई है।