प्रदेश की राजनीति में उपचुनाव कभी केवल एक सीट का मामला नहीं होते। वे भावनाओं, जातीय समीकरणों, सत्ता के संतुलन और भविष्य की दिशा के संकेत बन जाते हैं। बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाला 11 नवंबर का मतदान भी उसी राजनीतिक मौसम की आंधी का हिस्सा है। यहां की लड़ाई तीन उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि तीन राजनीतिक दृष्टिकोणों के बीच है। अनुभव बनाम युवा चुनौती बनाम संगठन शक्ति।
*समीकरणों की जमीन: जहां जाति ही गणित है*
अंता विधानसभा क्षेत्र का सामाजिक समीकरण खुद में राजनीतिक समीकरण है।
मीणा—लगभग 35 प्रतिशत, माली/सैनी—25 प्रतिशत,
जैन—15 प्रतिशत, बाकी हिस्सों में गुर्जर, ब्राह्मण, एससी, मुस्लिम और धाकड़ समुदाय हैं। यहां जाति सिर्फ पहचान नहीं, रणनीति भी है। ग्रामीण इलाकों का 70 प्रतिशत बूथ बताता है कि किसानों, मजदूरों और युवाओं की भावना निर्णायक होगी।
*तीन चेहरे, तीन कहानियां*
*प्रमोद जैन भाया (कांग्रेस)*
तीन बार के विधायक, पूर्व मंत्री और हाड़ौती के स्थापित नेता। जैन समाज में मजबूत पकड़ और कांग्रेस मशीनरी की पूरी ताकत उनके साथ।
* ताकत: अनुभव, संगठन का समर्थन, गहलोत-पायलट की जोड़ी का रोड शो और पुराने विकास कार्यों की याद।
* कमजोरी: भ्रष्टाचार की छवि, पिछले चुनाव की हार और मीणा वोटों के बंटने का डर। भाया के लिए यह चुनाव केवल जीत नहीं, प्रतिष्ठा की पुनर्प्राप्ति है। मोदी ने 2023 में कहा था— भाया रे भाया, खूब खाया। अब जनता बताएगी कि यह नारा असरदार था या अपमानजनक।
*मोरपाल सुमन (भाजपा)*
स्थानीय माली समाज के सादगी प्रिय नेता, बारां पंचायत समिति के प्रधान और वसुंधरा राजे के करीबी।
* ताकत: मोदी-वसुंधरा फैक्टर, संगठन की मशीनरी, माली वोटों का एकजुट होना और डबल इंजन सरकार की अपील।
* कमजोरी: नया चेहरा, कंवर लाल मीणा की सजा से उपजे असंतोष की छाया और मीणा वोट बैंक के खिसकने का खतरा। सुमन की जीत या हार यह तय करेगी कि वसुंधरा राजे की पकड़ हाड़ौती में अब भी मजबूत है या समय ने उसे ढीला कर दिया है।
*नरेश मीणा (निर्दलीय)*
राजस्थान यूनिवर्सिटी से निकला छात्र नेता, मीणा समाज का युवा चेहरा, जो अब सिस्टम के खिलाफ विकल्प के रूप में उभरा है।
* ताकत: युवाओं में लोकप्रियता, सीधी जातिगत अपील, भ्रष्टाचार-विरोधी छवि, भीम आर्मी और केजरीवाल कैंप की अप्रत्यक्ष मदद।
* कमजोरी: संगठन और संसाधनों की कमी, गैर-मीणा वोटों का ध्रुवीकरण और आक्रामक स्वभाव से दूरी बनाते वोटर। नरेश मीणा भले न जीतें, लेकिन अगर उन्होंने 20-25% वोट हासिल कर लिए, तो यह उनके लिए भविष्य की राजनीति का पासपोर्ट होगा और अंता की पेटियों से निकला सबसे बड़ा संकेत भी।
*तीन सवाल, तीन जवाब*
*क्या भ्रष्टाचार मुद्दा बनेगा*
यदि भाया हारते हैं तो भ्रष्टाचार विरोध की वह लहर भाजपा के लिए आने वाले महीनों में नैरेटिव बनेगी। यदि जीतते हैं तो जनता का यह संदेश होगा कि स्थानीय विकास और जातीय समीकरण अभी भी नैतिक नारों पर भारी हैं।
*क्या युवा गुस्सा सत्ता बदल सकता है*
नरेश मीणा की परफॉर्मेंस इस सवाल का जवाब देगी कि क्या आज की राजनीति में बिना पार्टी, केवल समाज और युवा ऊर्जा से चुनाव जीता जा सकता है।
*क्या मोदी-वसुंधरा का जादू बरकरार है*
मोरपाल सुमन की सफलता तय करेगी कि भाजपा के भीतर की अंदरूनी राजनीति किस दिशा में मुड़ेगी। क्या डबल इंजन अब भी भरोसेमंद है या जमीनी नेता की जरूरत बढ़ रही है।
*पेटियों से क्या निकलेगा*
14 नवंबर को जब पेटियां खुलेंगी, तब शायद केवल एक सीट का परिणाम नहीं निकलेगा बल्कि यह तय होगा कि राजस्थान की राजनीति आगे किस स्वर में बोलेगी।
मीणा वोट यदि एकजुट रहा तो नरेश हारकर भी किंगमेकर बन सकते हैं।
अगर माली-जैन एकजुट हुए तो भाया और सुमन में कांटे की लड़ाई तय है।
पर जो भी जीते, अंता की यह जंग सिर्फ उपचुनाव नहीं, राजस्थान के राजनीतिक मानस का नया मूल्यांकन होगी।
जनता ताज पहनाती है और ताज के नीचे बदलते हैं समीकरण। अब देखना यह है कि अंता की पेटियों से जनता का गुस्सा निकलेगा या भरोसे का वोट ? यही सवाल 14 नवंबर को राजस्थान की सियासत के माथे पर लिखा जाएगा।
*@ रुक्मा पुत्र ऋषि*