रे मन मरणें कहा डराई, आगै पीछे मरणा रे भाई॥ जे कुछ आवै थिर न रहाई, देखत सबै चल्या जग जाई॥ पीर पैगम्बर किया पयानां, शेख मुशायक सबै समानां॥ ब्रह्मा, विष्णु, महेश महाबलि, मोटे मुनि जन गये सवै चलि॥ निहचल सदा सोई मन लाई, दादू हर्ष राम गुण गाई॥
संतशिरोमणि श्री दादू दयाल जी महाराज कहते हैं कि हे अज्ञानी ! तू मृत्यु से क्यों डरता है, क्या डरने वाले को मृत्यु छोड देगी, कभी नहीं। एक दिन सभी को क्रम से मरना है। इस नश्वर संसार में कोई स्थिर नहीं रहता। सभी के देखते देखते यह जगत् काल के मुख में चला जा रहा है। जो धर्म प्रचारक पीर पैगम्बर वे सभी काल के वश हुए उसके मुख में चले गये। क्या तू यह नहीं देख रहा है जो महा बलवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर आदि देवता हैं, वे भी जब काल के मुख से नहीं बचे तो फिर संसार की कथा ही क्या है क्योंकि वह तो बराबर काल के मुख में ही पडा है। इसलिये हे मन ! जो सदा शाश्वत रहता है उस अविनाशी परमात्मा को भज। और उसी के गुण गान कर। योगवासिष्ठ में कहा है कि- जो संसार में रमणीय कर्म करने वाले तथा गौरव में सुमेरु के भी गुरु थे, उन सबको काल ने इसी तरह निगल लिया, जैसे गरुड सर्पो को निगल जाता है। यह काल बड़ा ही निर्दयी कठोर कर्कश कृपण और अधम है। संसार में अब तक ऐसी वस्तु नहीं हुई कि जिसे यह काल उदस्थ न कर ले। इस काल का विचार सदा सबको निगल ने का ही रहता है और यह सब को निगलता हुआ कभी तृप्त नहीं होता। अब तक इसके उदर में असंख्य लोग चले गये हैं, उनको पकड पकड कर मारता रहता है, खाता रहता है, तृप्त नहीं होता।