नेता वही, नीति वही: कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पैनल में नया कुछ नहीं*

AYUSH ANTIMA
By -
0


प्रदेश कांग्रेस ने जिलाध्यक्षों के चयन के लिए जो पैनल तैयार किए हैं, वे देखने में तो संगठनात्मक प्रक्रिया का हिस्सा लगते हैं, पर वास्तव में यह कांग्रेस की पुरानी प्रवृत्ति का पुनरावृत्ति मात्र हैं। अधिकांश जिलों के पैनलों में वही नाम सामने आए हैं, जो या तो मौजूदा विधायक हैं या पहले चुनाव हार चुके प्रत्याशी या फिर पूर्व जिलाध्यक्ष रहे हैं। यह सूची बताती है कि पार्टी अब भी पुराने ढर्रे पर चल रही है और परिवर्तन का रास्ता अपनाने से हिचक रही है। नए और युवा कार्यकर्ताओं की अनदेखी इस प्रक्रिया का सबसे चिंताजनक पहलू है। पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के भीतर ऐसे अनेक कार्यकर्ता उभरे, जिन्होंने बूथ स्तर से लेकर जिला स्तर तक पार्टी के कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाई, लेकिन जब जिलाध्यक्ष पदों की बात आई तो उनके नामों को किसी कोने में दबा दिया गया। इससे यह धारणा मजबूत होती है कि कांग्रेस के भीतर नेतृत्व परिवर्तन या नई सोच को स्थान देने का साहस नहीं है।
विधायकों के नामों का पैनल में शामिल होना दोधारी तलवार है। एक ओर यह तर्क दिया जा सकता है कि विधायक के पास जनता से सीधा जुड़ाव और अनुभव होता है, जिससे संगठन को बल मिल सकता है लेकिन दूसरी ओर यह भी सत्य है कि विधायक जब संगठन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, तो संगठन स्वतंत्र इकाई नहीं रह जाता, बल्कि सत्ताधारी राजनीति का परिशिष्ट बन जाता है। इस स्थिति में जिलाध्यक्ष का पद जनसेवा या कार्यकर्ताओं के संगठन का प्रतीक नहीं रह जाता, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को साधने का माध्यम बन जाता है। कांग्रेस ने लंबे समय से युवाओं और नये चेहरों को आगे लाने की बातें की हैं। युवा कांग्रेस और महिला कांग्रेस के नारे बार-बार गूंजते हैं, लेकिन जब वास्तविक निर्णय की घड़ी आती है, तो वही पुराने चेहरे उभर आते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी में परिवर्तन की इच्छा तो दिखाई जाती है, पर वास्तविक बदलाव का जोखिम उठाने का साहस नहीं किया जाता। इन पैनलों से एक बार फिर वही संदेश गया है कि कांग्रेस में संगठनात्मक नवाचार की बजाय परंपरागत चेहरों पर भरोसा ही प्राथमिकता बना हुआ है। यह तरीका फिलहाल स्थिरता तो दे सकता है पर भविष्य के लिए खतरा भी पैदा करता है, क्योंकि नए और ऊर्जावान कार्यकर्ता धीरे-धीरे हाशिये पर चले जाते हैं। सच तो यह है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती अब सत्ता में लौटने की नहीं, बल्कि अपनी सोच को नया रूप देने की है। जब तक संगठन में युवाओं और जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए जगह नहीं बनेगी, तब तक पार्टी केवल इतिहास के सहारे चलती रहेगी, भविष्य की ओर नहीं।

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!