लोकप्रिय सरकार वही होती है, जो जनहित को सर्वोपरि रखे। सरकार के किसी फैसले से यदि आमजन को पीड़ा होती है तो उस सरकार को जन हितैषी की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। एक तरफ सरकार ने बिजली बिल में बढ़ोतरी करके जोर का झटका दिया, उसके साथ ही सामाजिक पेंशन पर भी डाका डाला है। सूत्रों की मानें तो उन लोगों की सामाजिक पेंशन पर रोक लगा दी है, जो महीने का 2000 रूपये बिजली का बिल भरते हैं। अब यदि कोई वृद्ध है और उसके नाम से बिजली का कनेक्शन है और वह उस पेंशन से अपना काम निकाल रहा है जबकि बिजली का बिल उसके बेटे भर रहे हैं, वह केवल इसी पेंशन पर आश्रित है तो उसमें उसका क्या कसूर है कि भजन लाल शर्मा की डबल इंजन सरकार ने उसके मुंह से पेंशन का निवाला छीन लिया। सरकारे कार्पोरेट जगत पर मेहरबान रखती है और गरीब व असहाय को उनके अधिकारों से वंचित करें तो उसको किसी भी दृष्टि से जनहित की सरकार नहीं कहा जा सकता है। डबल इंजन सरकार के मुखिया कहते रहे हैं कि सरकार की जनहित की योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम छोर तक के व्यक्ति को मिले। यही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना है लेकिन वृद्धावस्था पेंशन को बंद करके डबल इंजन सरकार ने क्या संदेश देने का काम किया है, यह समझ से परे है। इस निर्णय को लेकर यदि सरकार की दलील को मानें तो वह व्यक्ति जो सालाना 24 हजार रुपए बिजली का बिल अदा करता है, वह पेंशन के दायरे में नहीं आता। निति आयोग का भी यही कथन हैं। इसके साथ ही सामाजिक पेंशन का नियम है कि उसके परिवार की सालाना आय 48000 रूपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। अब सिक्के के दूसरे पहलू पर नजर डालें कि बिजली का वर्षों पुराना कनेक्शन है, जिसको यह पेंशन मिल रही है। उसके बेटे उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसको कोई आर्थिक मदद नहीं करते और वह इसी पेंशन पर आश्रित है। क्या सरकार ने ऐसे आंकड़े भी निकालने की कोशिश की है कि कितने व्यक्ति अपने परिवार पर आश्रित न होकर इस पेंशन पर ही आश्रित है, भले ही बिजली का कनैक्शन उसके नाम है। किसी भी राजनीतिक दल को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि सत्ता उनकी बपौती है क्योंकि जनतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता अंकों का खेल है और ऐसे जनविरोधी फैसलों से अंकों को बदलते समय नहीं लगता।
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