जयपुर (श्रीराम इंदौरिया): राइट टू एजुकेशन (RTE) के तहत चयनित बच्चों के दाखिले को लेकर शिक्षा विभाग की लापरवाही ने हज़ारों परिवारों को निराशा और पीड़ा में झोंक दिया है। दाखिला प्रक्रिया शुरू हुए पूरे पाँच महीने बीत चुके हैं, लेकिन आज भी अधिकांश बच्चे किताब-कॉपी के बजाय घर की चारदीवारी में कैद हैं और पढ़ाई का इंतज़ार कर रहे हैं। संयुक्त अभिभावक संघ के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा —
“शिक्षा विभाग और मंत्रालय की नीयत अब कटघरे में है। पिछले तीन महीनों से नोटिसों की औपचारिकता निभाई जा रही है, पर बच्चों की पढ़ाई शुरू नहीं हुई। जब निजी स्कूलों में परीक्षाएँ तक हो रही हैं, तब RTE योजना के तहत चयनित बच्चे अभी तक कक्षा का चेहरा तक नहीं देख पाए हैं। यह बच्चों के भविष्य और अभिभावकों के सपनों की निर्मम हत्या है। सवाल यह है कि विभाग और मंत्रालय असली कार्रवाई से क्यों डर रहे हैं ? क्या वे निजी स्कूलों की मनमानी पर मौन रहकर बच्चों के संवैधानिक शिक्षा-अधिकार को दबाने में सहभागी हैं ?” संघ ने विभाग पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाते हुए कहा कि सिर्फ़ 21 निजी स्कूलों को अंतिम चेतावनी देना दिखावटी कदम है। प्रदेशभर में दर्जनों ऐसे स्कूल हैं जिन्होंने खुलेआम RTE दाखिले से इनकार किया, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिर किनके दबाव में विभाग काम कर रहा है ? संयुक्त अभिभावक संघ ने चेतावनी दी कि यह लड़ाई केवल नोटिसों के काग़ज़ी खेल तक सीमित नहीं रहेगी। अगर तुरंत सभी बच्चों को दाखिला नहीं मिला, तो इसे बच्चों के भविष्य के साथ सुनियोजित साज़िश माना जाएगा और संघ सड़कों से लेकर विधानसभा तक उग्र आंदोलन छेड़ेगा।