जयपुर (महेश झालानी): राजस्थान पुलिस महकमे की सूरत-ए-हाल यही बताने के लिए काफी है कि अधीनस्थ अधिकारी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के आदेशों को भी ठेंगा दिखा रहे हैं। जब राज्य का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी आदेश जारी करे और नीचे बैठे अधिकारी उसकी परवाह तक न करें, तो समझ लीजिए कि उस विभाग का भगवान ही मालिक है। 29 अगस्त 2025 को पुलिस मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कार्मिक) सचिन मित्तल ने जयपुर व जोधपुर पुलिस आयुक्तों और सभी रेंज आईजी को स्पष्ट परिपत्र जारी किया। इस परिपत्र में साफ कहा गया कि पर्याप्त संख्या में पुलिस निरीक्षक उपलब्ध हैं, फिर भी अनेक थानों की कमान उप निरीक्षकों को थमाई हुई है, यह स्थिति बेहद गंभीर मानी गई।
तथ्य भी इसी की तस्दीक करते हैं। जयपुर पुलिस आयुक्तालय में 12 निरीक्षक होते हुए भी पाँच थाने उप निरीक्षकों के हवाले हैं। पूरे प्रदेश में 96 पात्र निरीक्षक लाइन में बेकार बैठे हैं, जबकि थानों में उप निरीक्षक राज कर रहे हैं। यानी जिन्हें थाने चलाने चाहिए, उन्हें लाइन का धूप-धूल झेलने को भेज दिया गया है और जिनका काम सीखना है, उन्हें थाना प्रभारी की कुर्सी थमा दी गई है। अब बड़ा सवाल यह है कि जब परिपत्र को जारी हुए पूरे सात दिन बीत गए हैं, तो किसी अधिकारी ने इसकी पालना क्यों नहीं की ? जयपुर में तो हाल और भी बदतर है। यहाँ तीन नए थाने महीनों पहले स्वीकृत हो गए, लेकिन न तो भवन खड़े हुए और न ही थानाधिकारी नियुक्त हुए। डीजीपी के आदेशों की यह बेजा अनदेखी पूरे महकमे के अनुशासन पर सीधा तमाचा है।
नए डीजीपी के कार्यभार संभालने के बाद यह पहला सख्त निर्देश था। उम्मीद थी कि अधीनस्थ अधिकारी तुरंत हरकत में आएंगे, लेकिन यहाँ तो हालत उलटी है। आदेश मानना तो दूर, अधिकारियों ने जैसे डीजीपी की ही अनदेखी कर दी हो। नतीजा यह है कि पूरे पुलिस महकमे में इस परिपत्र की अवहेलना को लेकर जबरदस्त चर्चा है। राजस्थान पुलिस की कार्यशैली पर अब सवालिया निशान उठ खड़े हुए हैं। क्या यह मान लिया जाए कि डीजीपी के आदेशों की कोई अहमियत नहीं रह गई ? क्या अधीनस्थ अधिकारी खुद को शीर्ष अधिकारी से बड़ा समझने लगे हैं और सबसे अहम कि क्या पुलिस मुख्यालय में आदेश न मानने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत बची भी है या नहीं ?