जयपुर (सुरेश कासलीवाल): प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का जन्मदिन 7 सितंबर को है। इसको लेकर उनके समर्थकों में भारी उत्साह है। सोशल मीडिया पर जन्मदिन समारोह मनाने की अपीलें पसरी हुई हैं। कार्यकर्ताओं में दिखाई दे रहे अतिरिक्त जोश में पायलट के भविष्य के संकेत स्पष्ट हैं। उन्हें आगामी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जमीन पर लगातार गतिविधियां कर रहे हैं, उनके समर्थक अब भी गहलोत एक बार फिर से का अभियान छेड़े हुए हैं, मगर आम धारणा है कि गहलोत की पारी समाप्त हो चुकी है। अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो अगले मुख्यमंत्री पायलट ही होंगे।
इसके पीछे बड़ा तर्क यह है कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की ऑफर को ठुकराने के बाद गहलोत के संबंध हाई कमान से अब पहले जैसे नहीं रहे। उधर, हाईकमान पायलट पर कितना मेहरबान है, इसका प्रमाण तब ही मिल गया था जब कि पर्यवेक्षकों के जरिए पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का एक लाइन का प्रस्ताव भेजा गया था, जिसे गहलोत ने नाकामयाब कर दिया था। बड़ा बवाल हुआ। पायलट अपने गुट के विधायकों को ले कर मानेसर जा बैठे थे। सरकार को बचाने के लिए गहलोत ने साम, दाम, दंड, भेद, सारे हथियार आजमाए थे। इस घटना से पायलट पर बगावत का आरोप चस्पा हो गया लेकिन दूसरी ओर गहलोत की ओर से हाईकमान की अवहेलना के मुद्दे ने उस आरोप की हवा निकाल दी थी। जहां तक पायलट की बगावत का सवाल है तो जानकार लोगों को अच्छी तरह से पता है कि वह रूख अख्तियार क्यों करना पड़ा ? वे कहने भर को उप मुख्यमंत्री जरूर थे, मगर उनकी चलती बिलकुल नहीं थी। उनके समर्थकों के काम सीएमओ में दफन कर दिए जाते थे। नतीजतन पायलट समर्थक घबराकर गहलोत लॉबी की ओर जाने लगे। कुछ समय तक तो वे बर्दाश्त करते रहे, मगर जब उन्हें लगा कि इस तरह तो गहलोत उनकी पूरी जमीन ही खिसका देंगे, तब जाकर घुटन से बाहर निकलने का रास्ता अख्तियार किया। यह अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि जिस शख्स ने प्रदेश अध्यक्ष के नाते पूरे राज्य में घूम घूम कर कांग्रेस का जनाधार बढाया, जिसकी बदौलत कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति बनी, हाईकमान ने उसकी जगह गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। उन्हें उप मुख्यमंत्री पद पर संतोष करना पड़ा। मगर जब देखा कि गहलोत उन्हें सांस तक लेने नहीं देना चाहते, तब जा कर मजबूरी में बगावत जैसा कदम उठाना पडा।
*बात ताजा स्थिति की*
पूर्व मुख्यमंत्री के पास संगठन में अभी कोई बड़ा पद नहीं है लेकिन सचिन पायलट राष्ट्रीय महासचिव हैं। विधानसभा में भी वे अभी काफी मुखर हैं। किसानों और वोट चोर गद्दी चोर मुद्दे को लेकर वे कांग्रेस के विधायकों के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि बेशक गहलोत का जनाधार मजबूत है। होना स्वाभाविक ही है। आखिरकार उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए जिन अनगिनत नेताओं व कार्यकर्ताओं को उपकृत किया, वे गहलोत के पक्के समर्थक हैं। दूसरी ओर पायलट को तो कार्यकर्ताओं को सरकारी पदों से उपकृत करने कभी मौका ही नहीं मिला, सिर्फ संगठन में ही स्थापित कर पाए, इस कारण इस मामले में पायलट कुछ कमजोर हैं। हां, इतना जरूर है कि जिन नेताओं को उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान पदाधिकारी बनाया, वे उनके गुणगान करते दिखाई देते हैं। बात अगर जन सामान्य की करें तो पायलट गहलोत की तुलना में बहुत अधिक लोकप्रिय हैं। इंडिया टुडे के सर्वे मूड ऑफ द नेशन में तो उन्हें कांग्रेस में राहुल गांधी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बताया गया है। एक बड़ा अंतर यह भी है कि गहलोत का खुद का कोई जातीय जनाधार नहीं है, जबकि पायलट गुर्जरों के एक बड़े नेता के रूप में स्थापित हैं। पायलट राष्ट्रीय महासचिव होने के नाते हाई कमान के तो निकट हैं ही, वहीं उनका व्यक्तित्व भी चुंबकीय है। विशेष रूप से युवा वर्ग उनका दीवाना है और उनमें अपना भविष्य देखता है। युवाओं व महिलाओं को अधिक तरजीह दिए जाने की हाई कमान की पॉलिसी की वजह से भी युवा व युवतियों का झुकाव उनकी ओर है। पायलट के पिताश्री स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह समारोह के अवसर पर अशोक गहलोत से उनकी महत्वपूर्ण मुलाकात और साझी उपस्थिति रही, जो कांग्रेस के भीतर राजनीतिक एकता का संकेत है। इसका लाभ भी पायलट को मिलने की संभावना बताई जा रही है।
*अजमेर में उनके बगैर कुछ नहीं*
राजनीतिक परिस्थितियां कैसी भी रही हों लेकिन जानकारों का कहना है कि अजमेर में सचिन पायलट के बगैर कुछ भी संभव नहीं है। विधानसभा टिकट का मामला हो या फिर कांग्रेस संगठन का। टिकट में भी ज्यादातर उन्हीं की चली और संगठन की हालत यह है कि यहां पर अभी तक शहर और देहात जिला अध्यक्ष का पद भी रिक्त पड़ा है। इसके पीछे भी वजह केवल सचिन पायलट ही हैं। सचिन पायलट के बगैर सहमति के यहां संगठन भी कुछ नहीं करता। माना जाता है कि अजमेर एक तरीके से पायलट के कोटे में गिना जाता है।
*पायलट के खाते में गिने जाते हैं 8 में से 5 टिकट*
अजमेर में विधानसभा चुनाव की बात भी देखें तो 8 में से 5 टिकट सीधे तौर पर सचिन पायलट के खाते में गिने जाते हैं। इनमें अजमेर उत्तर से महेंद्र सिंह रलावता, मसूदा से राकेश पारीक, पुष्कर से नसीम अख्तर, नसीराबाद से शिव प्रकाश गुर्जर, ब्यावर से पारस पंच शामिल हैं। इनके अलावा केकड़ी में डॉ.रघु शर्मा खुद एक कद्दावर नेता हैं, जिनका सभी को समर्थन था। दक्षिण में द्रौपदी कोली को टिकट केवल इस कारण से मिला की सेवादल को एक भी टिकट नहीं मिला था। पूर्व मंत्री दीपेंद्र सिंह शेखावत का टिकट फाइनल हो जाने को देखते हुए सेवादल के प्रदेश अध्यक्ष हेमसिंह शेखावत का टिकट भी काट दिया गया था। ऐसे में सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालजी देसाई ने अपनी नाराजगी सीधी राहुल गांधी के सामने प्रकट की। कहा कि सेवादल को राजस्थान में एक भी टिकट नहीं मिला, तब राजनीति के चतुर खिलाड़ी माने जाने वाले गहलोत की नजर सेवादल की द्रौपदी कोली पर पड़ी। एक पट्टीका को लेकर पूर्व मंत्री और विधायक अनीता भदेल से ताजा ताजा हुए झगड़े के कारण कोली उनकी नजर में चढ़ी हुई थीं। तब उनके आशीर्वाद से सेवादल को एक टिकट मिल गया। इसके अलावा किशनगढ़ से विकास चौधरी पूर्व में भाजपा में ही थे लेकिन उनका टिकट फाइनल नहीं हो पाया था। टिकट कटने से वे काफी भावुक हो गए। जनता की सहानुभूति देखकर विकास चौधरी चर्चा में आए। कांग्रेस ने इसका फायदा उठाते हुए पासा फेंका और उन्होंने अचानक पाला बदल लिया, अशोक गहलोत और गोविंद सिंह डोटासरा के आशीर्वाद से उन्हें टिकट नसीब हो गया। पायलट की भी इसमें स्वीकृति थी।