भारत में हर वर्ष 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के रूप में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। यह दिवस महज औपचारिकता नहीं बल्कि ज्ञान, संस्कार के दाता, राष्ट्र निर्माण और आत्म निरीक्षण का पर्व है। इस दिवस पर सही मायने में शिक्षको का सम्मान करने के रूप में मनाया जाना चाहिए लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि यह एक दिवसीय मात्र औपचारिकता बन कर न रह जाए। हमारा समाज शिक्षकों से यह अपेक्षा रखता है कि आने वाली पीढ़ी को नौकरी के योग्य नहीं बल्कि देश का एक जिम्मेदार नागरिक व समाज में सृजनात्मक कार्य करने में अपनी शक्ति लगाए। मैने भी अपना कैरियर एक शिक्षक के रूप में शुरू किया था। आधुनिक परिवेश में शिक्षको के समक्ष क्या चुनौतियां रहती है, इसको बहुत करीब से देखा है। मेरा सदा मंतव्य रहा है कि शिक्षा कभी बेचने की वस्तु नहीं है। अतीत में देखें तो शिक्षा को सदैव राष्ट्र निर्माण का मूल आधार माना गया है। समय समय पर सरकारी निजी में बदलाव के साथ ही शिक्षा निति में भी बदलाव देखने को मिले हैं। विश्व में प्रतिस्पर्धा के चलते शिक्षा निति का मूल उद्देश्य विधार्थीयो का समग्र विकास व भविष्य निर्माण पर केन्द्रित होनी चाहिए। इस निति का उद्देश्य विधार्थी को नौकरी योग्य नहीं बल्कि सक्षम बनाना होना चाहिए। इसके साथ ही बदलते परिवेश में शिक्षको के लिए भी निरंतर प्रशिक्षण और क्षमता पर विकास देने पर बल देना होगा। देखा जाए तो भारत के भविष्य की दिशा इस बात से तय होगी कि देश के शिक्षक कितने समर्पित, प्रशिक्षित व दूरदर्शी है लेकिन कहा गया है कि हर पीली वस्तु सोना नहीं होती है। शिक्षा के व्यापारीकरण ने शिक्षा के स्तर में गिरावट में अहम भूमिका अदा की है। किसी मकान की नींव कमजोर हो तो उस पर भव्य इमारत खड़ी करने की सोचना मूर्खता ही होगी। देखा जाए तो शिक्षा आम आदमी की मूलभूत सुविधाओं में से एक है। इस दिशा में ठोस उपाय करने होंगे कि शिक्षा हर नागरिक का मूल अधिकार हो। वैसे तो सरकारी स्कूलों की दशा से शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा। राजस्थान की बात करें तो जर्जर होते सरकारी स्कूलों के भवन नौनिहालों को मौत की दावत दे रहे हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षण का स्तर व शिक्षकों के रवेयै से शायद ही कोई परिचित न हो। शिक्षा के मंदिरों में ऐसे कृत्य भी देखने को मिले हैं, जिनको हमारा सभ्य समाज मान्यता नहीं देता है। उन दुराचारीयो को किसी भी दृष्टि से शिक्षक की श्रेणी में नही रखा जा सकता है। डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक सम्मानित शिक्षाविद् और विद्वान थे। वे सदैव शिक्षकों के महत्व में विश्वास रखते थे। जब उनके छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक सुझाव दिया कि इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। ऐसे महान शिक्षक को उनके जन्मदिवस पर आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
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