लिव इन रिलेशनशिप एक ऐसी बीमारी समाज में घर कर गई है, जिससे हमारा सभ्य समाज विकृत होता जा रहा है। विदित हो पश्चिमी सभ्यता अपनाकर समाज का वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है। विदित हो लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है। इस बीमारी से ग्रसित एक मामला जोधपुर की कोर्ट में आया, जिसमें इससे पिडित और उससे उत्पन्न नाबालिग पुत्री को प्रतिमाह दस हजार रूपये देने के आदेश माननीय कोर्ट ने जारी कर दिए लेकिन क्या सभ्य समाज इस पुत्री को मान्यता देगा। महिला लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी लेकिन बच्ची के जन्म के बाद कथित पिता ने उसको छोड़ दिया। इन दोनो के बीच लिव इन रिलेशनशिप का इकरारनामा भी था। उसी को आधार मानकर माननीय कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। जोधपुर कोर्ट का यह फैसला कानून के दायरे मे बच्चों और महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित जरूर करता है लेकिन सामाजिक समरसता और बचाव के लिए परिवार और समाज को गहन संवाद की जिम्मेदारी दिखानी होगी। इसको लेकर हमारे सभ्य समाज के समक्ष गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं कि आखिर शादी बिना संतान उत्पन्न करेंगे तो उनका भविष्य क्या होगा। यदि बिना शादी के बंधन में बंधे युवा लिव इन रिलेशनशिप में रहेगे तो समाज में विकृतियो का अंदाजा लगाया जा सकता है। भले ही इस प्रथा को मानवीय कोर्ट ने मान्यता दी हो लेकिन हमारी सनातनी मान्यताओं के अनुसार हमारे सभ्य समाज का दायित्व बनता है कि इस कुप्रथा को कौन रोके। सामाजिक संगठनो को भी इस कुप्रथा को लेकर आगे आना चाहिए। यह समझ से परे है कि एक माता पिता कैसे स्वीकार रहे हैं कि उसका बेटी या बेटा बिना विवाह किए माता पिता बन जाए ? एक तरफ हमारा सभ्य समाज सनातन की पताका लिए घूम रहा है तो दूसरी तरफ इस कुप्रथा को लेकर चुप है। जिन संस्कारों के लिए हमारा समाज जाना जाता है निश्चित रूप से यह हमारे समाज में संस्कारों के पतन की पराकाष्ठा ही है। समाज मे रोज पत्नी या पति की निर्मम हत्याओं के समाचार देखने को मिलते हैं, उसका एक कारण लिव इन रिलेशनशिप की कुप्रथा भी है। जोधपुर कोर्ट के इस फैसले के बाद आमजन में यह चर्चा तेज हो गई है कि लिव इन रिलेशनशिप की कानूनी मान्यता भारतीय संस्कृति के लिए चुनौती बन गई है व इसके साथ ही हमारा सभ्य समाज किस ओर जा रहा है।
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