डूंगर कालेज से जुड़ा 25 हजार छात्रों का भविष्य अधर में

AYUSH ANTIMA
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बीकानेर का डूंगर कालेज रियासत काल में बना है। इस कालेज ने देश को बहुत सारी प्रतिभाओं को निखार कर दिया है। अभी भी कालेज का बड़ा परिसर और कई तरह के संसाधनों के साथ संभाग और प्रदेश के बड़े कालेजों में शुमार है। चालू शैक्षणिक सत्र मे इस कालेज में 11 हजार नियमित और करीब 15 हजार स्वयंपाठी विद्यार्थी है। विज्ञान, वाणिज्य और कला संकाय के अलावा बीबीए, बीसीए, एईडीपी यूजीसी का रोजगार आधारित पाठ्यक्रम चल रहा है। कालेज को नई किरण नशा मुक्ति केन्द्र बनाया गया है। संगीत में पीजी पाठ्यक्रम, स्वामी विवेकानंद केन्द्र, विभिन्न तरह के 35 संकाय है। फिर भी स्थिति यह है कि 11 हजार नियमित छात्रों में से 11 सौ छात्र ही कालेज नहीं आते। इतना बड़ा कालेज छात्रों की प्रवेश संख्या को देखते हुए खाली ही रहता है। विज्ञान के विद्यार्थी और कुछ वाणिज्य के तो आते हैं, बाकी सूनसान है। विद्यार्थियों की उपस्थिति को पुख्ता करने की कोई प्रणाली नहीं है। क्लासेज कितनी लगती है, यह बात भी कोई आसानी से पता कर सकता है। इसके लिए क्लास रूम में झांक कर देखने की जरूरत नहीं है। पार्किंग स्थल पर नजर दौड़ाकर अंदाजा लगाया जा सकता है। न कोई हाजिरी होती है और न कोई छुट्टी की अर्जी। टाईम टेबल तो कहीं देखने को नहीं मिलता। रिकार्ड देखने से वास्तविकता सामने आ सकेगी। कहने को तो कालेज का नेट एक्रीडेशन में तीन बार ए ग्रेड दिखाया गया है। वास्तव में कालेज में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसे साबित करता हो। न ए वन क्लास रूम है और न ही एक्रीडेशन के मानक पूरे करने वाली अन्य व्यवस्था। और तो और प्राध्यापकों के स्वीकृत पद भी 35 से 40 पद रिक्त पड़े है। स्थिति यह है कि इतने बड़े कालेज में क्लर्क का एक भी पद भरा हुआ नहीं है। लाइब्रेरियन के पद भी खाली पड़े है। लाइब्रेरी राम भरोसे हैं। इस काम को विद्या संबल योजना में रखे कार्मिक को प्रभार दिया गया है। कोई कालेज में जब एक्रीडेशन टीम आती है तो अस्थायी रूप से दिखाई जाने वाली व्यवस्थाएं भी नहीं बची है। कालेज में 53 तरह के गेम (खेल) शामिल किए गए हैं। एक भी तरह के खेल का कोई सुव्यवस्थित मैदान नहीं है। कोई कोच नहीं है। खेल के संसाधन नहीं है। जब कोच नहीं तो खेल के संसाधन का उपयोग कौन करवाएगा। अनुबंध पर रखा व्यक्ति खेल कोच की औपचारिकता पूरी करता है, तैराकी में 11 मेडल मिले है। जबकि तैराकी के लिए कालेज में तरण तारण नहीं है। विभिन्न खेलों में 165 मैडल कालेज को मिले है, जो विद्यार्थी खिलाड़ी के बूते ही हासिल हुए हैं। केन्द्रीय खेल राज्य मंत्री ने कालेज में आयोजित एक कार्यक्रम में खेल मैदानों के विकास के लिए 15 लाख रुपए की घोषणा की थी। यह राशि नहीं मिली है। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी कालेज में 30 क्लास रूम बनाने के लिए 8.3 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। यह राशि भी नहीं आई है। पीटीईटी योजना में बकाया 25 करोड़ रुपए राज्य सरकार में कालेज के बाकी है। इसके प्रस्ताव राज्य सरकार को भेज गए हैं, कोई रेस्पांस नहीं है। 
बीबीए और बीसीए के पीठ्यक्रम तो लागू हो गए हैं। इसकी कम्प्यूटर लैब नहीं है। 15 करोड़ की लागत से बनने वाले ओडिटोरियम का 5 करोड़ की लागत से स्ट्रक्चर बना है। बाकी राशि ही नहीं आ रही है। सवाल यह है कि बीकानेर जिले के 25 हजार विद्यार्थियों के भविष्य की जिम्मेदारी किसकी है। सरकार में कौन देखने वाला है। व्यवस्था जिस ढर्रें पर चल रही है, उसको ट्रेक पर लाने की जिम्मेदारी किसकी है। बीकानेर में संभागीय आयुक्त, कालेज शिक्षा का अतिरिक्त निदेशक यहीं बैठे है। यहां के सांसद से लेकर विधायक तक और मंत्री भी है, क्या वे भावी पीढ़ी के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी महसूस करते है। यह एक कुरेदने वाला सवाल है। समय निकल जाएगा। ये विद्यार्थी बड़े होकर देश के नागिरक बन जाएंगे। देख लो इनकी शिक्षा का स्तर क्या रह पाएगा। यह सरकार की तो जिम्मेदारी है ही, समाज की भी नैतिक जिम्मेदारी है। जनप्रतिनिधि और जन कल्याण में लगी संस्थाओं को भी 25 हजार विद्यार्थियों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।

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