आदिगुरु शंकराचार्य ने ही महाराष्ट्र का किया नामकरण*

AYUSH ANTIMA
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मुंबई (देशबंधु जोशी): स्वामीश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती परमाराध्य के दर्शन व उनसे आशीर्वाद लेने के लिए दिनभर श्र‌द्धालुओं का तांता लगा रहा। मुंबई परमाराध्य परम धर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामीश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008 महाराज जी ने सुबह श्रीविष्णु जी के पूजन के बाद 108 कुंडीय गौ प्रतिष्ठा यज्ञ का पूजन कर श्रीगणेश किया। इसमें 108 वैदिक ब्राह्मण गौमाता की रक्षा के लिए सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक 33 कोटि देवताओं के लिए आहुतियां देंगे, कोई भी व्यक्ति इस यज्ञ में अपना योगदान दे सकता है। परमाराध्य के दर्शन व उनसे आशीर्वाद लेने के लिए दिनभर श्र‌द्धालुओं का तांता लगा रहा। परमाराध्य ने शाम को पूजन के बाद धर्मसभा में शिवाजी और महाराष्ट्र के बारे में बताया। उन्होंने एक कहानी सुनाते हुए कहा कि एक बार जब शिवाजी छोटे थे, तलवार लेकर बाजार से निकल रहे थे, उन्होंने देखा कि एक कसाई गौमाता को रस्से से बांधकर खींचता हुआ जबरदस्ती ले जा रहा है, सब लोग देख रहे थे लेकिन कोई उसे रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था क्योंकि वह राजा का आदमी था। यह दृश्य शिवाजी ने भी देखा और उसे ललकारा सुनो इस गौमाता को कहां ले जा रहे हो, छोड़ो इसे, यह हमारी माता है, कसाई बोला नहीं छोड़ेंगे, चलो हटो सामने से, शिवाजी ने फिर कहा छोड़ों, हम तुम्हें आखरी चेतावनी देते हैं वरना तुम्हारा सिर अलग कर देंगे। कसाई फिर नहीं माना और शिवाजी ने म्यान से तलवार निकाली और कसाई का सिर धड़ से अलग कर दिया। गाय जैसे ही कसाई से छूटी शिवाजी के परिक्रमा करने लगी, पूरे बाजार में अफरा-तफरी मच गई कि अब क्या होगा लेकिन जो धार्मिक लोग थे, गाय को मानने वाले लोग थे, उन्होंने शिवाजी को अपना सरताज मान लिया और तब से ही शिवाजी का नाम विख्यात होने लगा। शिवाजी महाराष्ट्र के सबसे अच्छे शासक के रूप में निरूपित किये जाते हैं। उन्होंने मुगल सल्तनत को उखाड़ कर फैंक दिया। महाराज श्री ने बताया कि आदिगुरु शंकराचार्य जी का महाराष्ट्र से घनिष्ठ संबंध है, करीब 2500 वर्षों पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य जी का जन्म हुआ। 8 वर्ष की उम्र में उन्होंने चारों वेदों का अध्ययन कर लिया और 16 साल की उम्र में चारों पर भाष्य लिख दिया। पूरे देश का चार बार भ्रमण किया और पूरे देश को एकजुट कर दिया, आज जिस भारत का हम दर्शन कर रहे हैं, वह आदिगुरु शंकराचार्य जी का बनाया हुआ है। उन्होंने 4 पीठ बनाने के लिए एक संविधान बनाया, जिसका नाम है मठाम्नाय अनुशासन। इस प्रदेश को आदिगुरु शंकराचार्य जी ने ही पहली बार महाराष्ट्र नाम से संबोधित किया है। पादुका पूजन राजकोट गुजरात के शास्त्री गोपाल शास्त्री, हरदीप शास्त्री, जयेश व सूरत के शास्त्री गोपाल मुंबई के शिवाजी नवटके व दीपेश दवे ने किया। वैदिक मंगलाचरण जगद्‌गुरुकुलम के छात्र अंश पाण्डेय व अनंत बाबू झा तथा पौराणिक मंगलाचरण व स्वागत गीत आनंद पाण्डेय ने पेश किया। मेरठ के आनंद प्रकाश गुप्ता ने भी गुरुदेव भगवान के चरणों में गीत पेश किया। गौध्वज यात्रा प्रभारी देवेन्द्र पाण्डेय ने अपने विचार रखे। मंच पर दंडी स्वामी अम्बरीषानंद जी महाराज, दंडी स्वामी श्री अप्रमेय शिवसाक्षातकृतानंद गिरी जी महाराज, विजय प्रकाश जी मानव, देवेन्द्र पाण्डेय जी व नरोत्तम पारीक जी मौजूद रहे, इसके अलावा सैंकड़ों श्रद्धालु व बटुक कार्यक्रम में मौजूद रहे।

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