राजस्थान में डबल इंजन सरकार में प्रदेश की कमान भजन लाल शर्मा के हाथों सौंपी। यह प्रदेश के विप्र समाज के लिए गौरवशाली क्षण था कि भजन लाल शर्मा मुख्यमंत्री बने। प्रदेश का मुखिया वैसे किसी जाति या धर्म से बंधा नहीं रहता, वह छतीश कौम के आवाम के भलाई के लिये तत्पर रहता है। सरकार के गठन के बाद हर जाति के बोर्ड का करीब करीब पुनर्गठन हो चुका परन्तु विप्र कल्याण बोर्ड का पुनर्गठन अभी तक नहीं हुआ है। भजन लाल शर्मा सरकार द्वारा विप्र कल्याण बोर्ड के पुनर्गठन न होने के कारण निश्चित रूप से विप्र समाज में आक्रोश है। राजस्थान का विप्र समाज जनसंघ के समय से ही भाजपा का परम्परागत वोट बैंक रहा है लेकिन विप्र कल्याण बोर्ड के पुनर्गठन में देरी करना विप्र समाज को लगता है कि भाजपा समाज की अनदेखी कर रही है।
विदित हो विप्र समाज के प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर अनगिनत संगठन बने हुए हैं लेकिन उनकी समाज के प्रति संवेदनशीलता शायद अचेतन अवस्था में चली गई है। संगठित समाज ही अपना वजूद बचाने में कामयाब होता है। विप्र समाज को अन्य समाजों से सीख लेनी होगी कि पांच अंगुली जब बंद होती है तो वह ताकत बन जाती है। इसके लिए सभी विप्र संगठनों का आह्वान है कि तहसील स्तर पर विप्र कल्याण बोर्ड के पुनर्गठन की मांग सरकार से की जाए क्योंकि जब कोई बच्चा रोता नहीं है तो उसकी मां भी उसको दूध नहीं पिलाती है। संगठन में शक्ति निहीत है, इस मूल मंत्र को अंगीकार करने से ही अधिकारों की रक्षा हो सकती है। अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना कोई भीख नहीं बल्कि समाज का अधिकार है। इस अधिकार से वंचित करना आखिर सरकार की मंशा क्या है। सरकार की मंशा का तभी पता चलेगा, जब समाज की हुंकार जयपुर में बैठे सियासतदारों के कानों में गूंजेगी। विदित हो गहलोत सरकार ने विप्र समाज के सम्मान को ध्यान में रखते हुए विप्र कल्याण बोर्ड का गठन किया था। इसके पदाधिकारी भी बनाए गये लेकिन यह समाज का दुर्भाग्य की वह संगठन केवल कागजो में ही सिमटकर रह गया। उसके पदाधिकारियों ने केवल अपना समय साफा व माला पहनने में ही व्यतीत कर दिया। उससे सीख लेनी होगी व मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से अपील है कि विप्र कल्याण बोर्ड की कमान विप्र समाज के ऐसे महानुभाव को सौपी जाए, जो विप्र समाज के लिए पूर्ण रूप से समर्पित भाव रखें।