दादू मोहि दादू भरोसा मोटा,
तारणतिरण सोई संगि तेरे, कहा करे कलि खोटा॥ टेक॥ दौं लागी दरिया थें न्यारी, दरिया मंझि न जाई। मच्छ कच्छ रहैं जल जेते, तिनकौं काल न खाई॥ १॥ जब सूवै पिंजर घर पाया, बाज रह्या वन माहीं। जिनका समर्थ राखणहारा, तिनकौं को डर नांहीं॥ २॥ साचै झूठ न पूजै कबहूं, सति न लागै काई।
साचा सहजै समांनां, फिरि वै झूठ बिलाई॥ ३॥ मुझे महान् से महान् उस परमात्मा का पूर्ण विश्वास है कि वह मेरी अवश्य कलियुग के दोषों से रक्षा करेंगे। मेरा स्वामी सर्वसमर्थ है अत: मैं कलियुग से भयभीत नहीं होता।
वह तो संसार से पार करने वाला है अत: उसके आगे बेचारे कलियुग का क्या बल चल सकता हैं ? जैसे वन की आग समुद्र में रहने वाले मत्स्य और कच्छप आदि जीवों को नहीं जला सकती कारण कि वह समुद्र के मध्य जल में नहीं जा सकती, क्योंकि समुद्र में जाते ही वह स्वयं ही नष्ट हो जायेगी। जैसे पिंजरे में स्थित शुक पक्षी का बाज कुछ नहीं कर सकता क्योंकि वह पिंजरें में सुरक्षित है। इसी प्रकार जिस भक्त की रक्षा करने वाला सर्वसमर्थ परमात्मा है वह भक्त मृत्यु तथा कलियुग से कभी नहीं डरता किन्तु निर्भय रहता है। सत्य सदा सत्य ही है, असत्य कभी सत्य की तुलना नहीं कर सकता और सत्य कभी किसी भी प्रकार के दोषों से दूषित भी नहीं हो सकता। अत: सत्य परमात्मा का सहारा लेने वाले भक्त सत्य परमात्मा को प्राप्त हो जाते हैं। अत: उनको भय किसी का भी नहीं होता और असत्यवादी असत्य के कारण संसार में गिरते रहते हैं। परमात्मा ही सत्यस्वरूप है। अत: सत्य बोलते हुए सत्य का ही अवलम्बन ग्रहण करो। भागवत में लिखा है कि संसार के सहायक प्रभो ! निमेष से लेकर वर्ष-पर्यन्त अनेक विभागों में जो विभक्त काल है, जिसकी चेष्टा से यह संसार चेष्टित हो रहा है और जिसकी कोई सीमा नहीं, वह आपकी लीलामात्र है। हे प्रभो ! यह जीव मृत्युग्रस्त हो रहा है, इस मृत्युरूप करालकाल से भयभीत होकर संपूर्ण लोकों में भटकता रहता है, परन्तु इसे कभी भी ऐसा स्थान नहीं मिला, जहां यह निर्भय होकर रह सके। आज बड़े भाग्य से आपके चरणारविन्दों की शरण मिली है, जहां यह निर्भय होकर सुख की नींद सो सके। औरों की तो बात ही क्या है, स्वयं मृत्यु भी आपसे भयभीत होकर भाग गई है। हे प्रभो ! आप सत्य संकल्प वाले हैं सत्य ही आपकी प्राप्ति का मुख्य साधन है। सृष्टि के पहले, पश्चात्, प्रलयकाल में तथा संसार की स्थिति के समय आप ही सत्यरूप से रहते हैं। पृथ्वी आदि पाँचों भूतों के आप ही कारण हैं तथा आप ही अन्तर्यामीरूप से विराजते हैं। आप इस दृश्यमान जगत् के परमार्थ स्वरूप है। आप तो सत्यस्वरूप हैं। हम आपकी शरण में आये हैं। आप ही
सत्य के प्रवर्तक हैं।