राजस्थान में जिस एसीबी को भ्रष्टाचारियो को गिरफ्त में लेने की जिम्मेदारी दे रखी है, उसी एसीबी के एडिशनल एसपी जगराम मीणा को 10 लाख रूपये के साथ एसीबी ने ही गिरफ्त में लिया। गहन जांच के बाद करोड़ों रूपये की संपति के कागजात भी सामने आये है। एसीबी के डीजी को शिकायत मिली थी कि मीणा ने झालावाड़ में परिवहन, खनन, आबकारी और पुलिस विभाग से महीना बांध रखा था। इस वसूली की आड़ में इन विभागों के अफसरों को भ्रष्टाचार की खुली छूट दे रखी थी। 27 तारीख को मीणा उस भ्रष्टाचार की कमाई को ठिकाने लगाने झालावाड़ से जयपुर आ रहे थे तभी शिवदासपुरा टोल नाके पर एसीबी ने उनको धर दबोचा। यह देश के भ्रष्ट सिस्टम की कितनी विडंबना है कि जिन अधिकारियों को भ्रष्टाचारियों को पकड़ने की जिम्मेदारी दे रखी है, वही भ्रष्टाचार के समुद्र में गौते लगा रहे है। यह सिस्टम इतना भ्रष्ट हो गया है कि सुनने वाला कोई नहीं तभी इनके होंसले बुलंद हैं। इसी क्रम मे यदि सूत्रों की मानें तो राजस्थान में बहुचर्चित नेक्सन एवरग्रीन चिटफंड घोटाले में 500 करोड़ की रिश्वत के आरोप उन्हीं अधिकारियों पर लगे, जिनको इस जांच का जिम्मा सौंपा था।
उपरोक्त दोनो विषयों को देंखे तो यही कहा जा सकता है कि ईमानदारी तभी तक जिंदा है जब तक बेईमानी करने का अवसर न मिले। ऐसा नही कि ईमानदारी से ओतप्रोत अधिकारी नही है लेकिन इस भ्रष्ट सिस्टम ने उनके भी गिरेबान काले कर दिए। यदि हम भारतीय राजनीति की बात करें तो नेता भ्रष्टाचार को लेकर बहुत बड़े दावे करते हैं। उनके भाषण सुनने में इतने अच्छे लगते हैं कि नेताजी भ्रष्टाचारियों को बिल्कुल नहीं छोडने वाले। भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस की बात होती है लेकिन उपरोक्त घटनाक्रम इस बात का सबूत है कि भ्रष्टाचार रूपी कैंसर सिस्टम के तह तक पहुंच गया है। इन दावों के उलट धरातल पर ऐसे अधिकारी भ्रष्टाचार करते पकड़े गये, जिसको रोकने के लिए उनको तैनात किया था। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि अपने गाड फादर बिना कोई भी अधिकारी इस तरह के कार्य को अंजाम नहीं दे सकता। निश्चित ही यह कहा जा सकता है कि कही न कही सत्ता व अफ़सरशाही के गठजोड़ बिना भ्रष्टाचार संभव नहीं। मीणा के इस कारनामे को देखकर यही कहा जा सकता है कि सरकार ने दूध की रखवाली के लिए बिल्ली को बैठा दिया है।