पीएम कृषि सिंचाई योजना एवं एमजेएसए से पुनर्जीवित हो रही है जल संरक्षण की परम्परा

AYUSH ANTIMA
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कोटपूतली (रमेश बंसल मुन्ना): प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एवं मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के तहत जल संरक्षण, सिंचाई प्रबंधन के लिये हुये कार्यों से ग्रामीण क्षेत्र में जल संरक्षण की परम्परा पल्लवित हो रही है। साथ ही किसानों को बिना लागत के सिंचाई सुविधा का लाभ मिलने से सरकार की किसानों को दोगुनी आमदनी करने का सपना भी साकार हो रहा है।

*ग्रामीण क्षेत्र में जल संरक्षण की परम्परा पल्वित*

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई 2.0 योजना में जिले भर में फॉर्म पॉण्ड निर्माण, पोखरों में रिचॉर्ज सॉफ्ट निर्माण एवं तलाई गहरी करने के कार्य से ये परम्परागत जल स्रोत वर्षा जल संरक्षण के बड़े स्थल बनकर ग्रामीण क्षेत्र में मानव जीवन, पशु-पक्षी एवं पर्यावरण संरक्षण के लिये भी मददगार साबित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान में प्रत्येक गांँवों में जल स्रोतों का जीर्णोंद्धार एवं संरक्षण का कार्य हाथ में लिया गया है। जिनमें परम्परागत कुंओं का रखरखाव, तलाई एवं पिट निर्माण, एनीकट, तालाबों के पिचिंग कार्य से जल संरक्षण की क्षमता बढ़ी है। वर्ष भर वर्षा का पानी जमा रहने से आसपास वनस्पति की हरितमा पट्टी भी इन क्षेत्रों में विकसित हो रही है।

*वंदे गंगा जल संरक्षण*

जल अभियान के तहत ग्राउण्ड वॉटर रिचार्ज करने, भू-जल संरक्षण करने, अधिकाधिक वृक्षारोपण हेतु आमजन को जागरूक करने के संबंध में राज्य सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं। इसके तहत प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत हुये विकास कार्यों एवं जल संरक्षण के स्थलों व ग्रामीण क्षेत्रों में इन आधारभूत संरचनाओं के निर्माण से आये परिवर्तनों को विस्तार से जानने की आवश्यकता है।

*ग्राम चूरी का अमृत सरोवर 4500 ग्रामवासियों के लिये होगा सहायक*

ग्राम चूरी में भारत सरकार की अमृत सरोवर योजना के तहत ग्राम विकास मंत्रालय द्वारा विकसित किये जा रहे अमृत सरोवर में किये जा रहे कार्य सराहनीय है। विभागीय कार्मिक धर्मेन्द्र ने बताया कि मनरेगा व कंजर्वेंस के तहत 50 लाख लीटर की क्षमता वाले जोहड़ के चारों तरफ पत्थर पिचिंग का कार्य कर बाउण्ड्री तैयार की जा रही है। साथ ही बाउण्ड्री के चारों तरफ ट्रैक तैयार कर पौधारोपण का कार्य भी किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इससे वर्षा जल संरक्षण व संचयन में सहायता मिलेगी। साथ ही भू-जल स्तर में भी वृद्धि होगी, ग्रामीणों को मनरेगा के तहत रोजगार भी प्राप्त हो रहा है एवं दैनिक कार्यों में पानी का उपयोग कर सकेंगे। एसीईओ महेंद्र सैनी ने बताया कि अमृत सरोवर योजना के तहत जिले में उपखण्ड विराटनगर की ग्राम पंचायत तेवड़ी, दूधी आमलोदा, कोहाड़ा, छाकोड़ा खुर्द, तालवा बिहाजर, बजरंगपुरा में कार्य पूर्ण हो चुका है। उपखण्ड बानसूर में सबलपुरा, किशोरपुरा, बुर्जा, शाहपुर, पोलावास व उपखण्ड नीमराना में गीगलाना, रोडवाल, बनी जोनायचा, नाटाना, चौबारा एवं उपखण्ड बहरोड़ की ग्राम पंचायत बसई, ढूंढ़ारिया, जखराना, बिजोरावास, खोहरी में अमृत सरोवर विकसित किये गये है।

*फतेहपुरा और मंगलवा में एनीकट पर देखा वर्षा जल संचयन का कार्य*

पावटा उपखण्ड के ग्राम फतेहपुरा में वर्षा जल संचयन हेतु निर्मित 02 एनीकट पर से ग्राउण्ड वॉटर रिचार्ज में सहायता होगी। वॉटर शेड विभाग एईएन प्रदीप यादव ने एनीकट के बारे में जानकारी देते हुये बताया कि एनीकेट का निर्माण कार्य लागत 07.45 लाख एवं 05.59 लाख की स्वीकृति राशि से मार्च 2025 से प्रारम्भ किया गया है। निर्माण कार्य लगभग पूर्ण हो चुके हैं, सिर्फ पत्थर पिचिंग का कार्य शेष है, जिसे जल्द ही पूर्ण कर दिया जायेगा। उन्होंने बताया कि 4800 घन मीटर एवं 5700 घन मीटर की क्षमता वाले एनिकट के निर्माण से भू-जल स्तर में वृद्धि होगी। ग्रामवासियों को दैनिक कार्यों के लिये पानी उपलब्ध होगा। इस दौरान अधीक्षण अभियंता वॉटर शेड हरिमोहन बैरवा ने बानसूर उपखण्ड के ग्राम मंगलवा में 19.90 लाख की स्वीकृत राशि से करीब 01 करोड़ लीटर पानी की क्षमता के निर्मित एनिकट के बारे में जानकारी देते हुये बताया कि एमजेएसए के तहत वॉटर शेड विभाग द्वारा जिले में करीब 980 कार्य प्रगतिरत हैं। उन्होंने बताया कि एनीकट एक चिनाई वाला चेक डैम है जो सिंचाई को बनाये रखने और विनियमित करने के लिये पानी को रोकने के लिये एक धारा के पार बनाया जाता है। एनीकट के पीछे संग्रहित पानी का उपयोग फसलों की सिंचाई और पशुओं के लिये पीने के पानी के लिये किया जा सकता है।

*नर्सरी में 02.78 लाख पौधे हो रहे तैयार*

उपखण्ड विराटनगर के भाबरू में वन विभाग पावटा रेंज द्वारा संचालित नर्सरी में वर्ष 2025-26 में हरियालो राजस्थान एवं एक पेड़ माँं के नाम अभियान के तहत वन विभाग द्वारा 02 लाख 78 हजार पौधों को तैयार करवाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसमें 02 लाख 50 हजार पौधे ञ्जह्रस्नक्र स्कीम एवं 20 हजार पौधे क्रस्नक्चक्क स्कीम के तहत तैयार करवाये जा रहे है तथा लगभग 03 हजार पौधे टॉल प्लांट्स के तैयार करवाये जा रहे है। सहायक वन संरक्षक तरुण प्रकाश यादव ने बताया कि नर्सरी में अर्जुन, गूगल, शीशम, गुलाब, गुलर, अमरूद, कनेर, करंज, बहेड़ा, गुलमोहर, आंवला आदि विभिन्न प्रकार के पौधे तैयार करवाये जा रहे है, जिनका वितरण ऑनलाईन एवं ऑफलाईन दोनों ही माध्यम से किया जा रहा है। वनपाल धर्मवीर वाल्मीकि ने बताया कि एक जिला एक स्पिसिज में 04 हजार गूगल के प्लांट्स तैयार किये जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि विलुप्त प्रजाति में खिरनी, गुदी, खेजड़ी, कड़ाया के पौध तैयार किये जा रहे हैं।

*जोहड़ निर्माण से जल संरक्षण एवं पौध शाला से पर्यावरण संरक्षण का होगा कार्य*

उपखण्ड विराटनगर के बियावास ग्राम में चारागाह में बनाये जा रहे जोहड़ में वर्षा जल संचयन से आसपास ग्रामीण लोगों को दैनिक कार्यों व पशु हेतु आवश्यक जल उपलब्ध हो सकेगा। साथ ही भू-जल स्तर में भी वृद्धि होगी। साथ ही बियावास में ग्राम पंचायत द्वारा बनाई गई पौधशाला में तैयार पौधों को राज्य सरकार के वृक्षारोपण अभियानों में लगाया जायेगा।

*सोलर प्लांट दे रहा विद्युत आत्मनिर्भरता का संदेश*

उपखण्ड बानसूर के ग्राम भूपसेड़ा में पीएम कुसुम सी योजना के तहत मैसर्स पवन एंटरप्राईजेज (बलबीर मोगर) द्वारा 10 मेगावाट के 02 सोलर प्लांट स्थापित किये गये हैं। जिनकी सप्लाई 33/11 केवी जीएसएस कल्याण नगर व बालावास को दी जाती है। विद्युत विभाग एईएन अमित यादव ने बताया कि उक्त प्लांट को लगाने के लिये लगभग 16-16 करोड़ की लागत आई है। उन्होंने बताया कि सोलर प्लांट से जुड़े हुये पॉवर हाऊस से निकलने वाले फीडर व उनसे जुड़े हुये कृषि कनेक्शन वाले किसानों को दिन में बिजली दी जा रही है। साथ ही लोड शेडिंग के दौरान भी इन फीडर्स की बिजली की कटौती नहीं होती है। इससे किसानों वा लोगों को राहत मिली है।

*हमीरपुर के मॉडल तालाब पर किया पौधरोपण*

उपखण्ड बानसूर के हमीरपुर में स्थित तालाब को मॉडल तालाब की संज्ञा दी गई है। जिसमें आसपास के पहाड़ी इलाकों से वर्षा के समय काफी मात्रा में जल एकत्रित हो जाता है, जिससे ग्रामीणों को जल की आपूर्ति में सहायता प्राप्त होती है एवं ग्राउण्ड वॉटर रिचार्ज भी अच्छी मात्रा में हो पाता है। साथ ही वॉटर शेड विभाग द्वारा क्षेत्र के नदी बहाव क्षेत्र में करीब 20 एनिकट तैयार किये जा रहे हैं, जिससे वर्षा के दिनों में पहाड़ों से आने वाले जल का संचयन किया जा सकेगा।

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