संगठन चुनाव को लेकर भाजपा झुंझुनूं जिलाध्यक्ष को लेकर असमंजस का दौर जिला प्रमुख व पूर्व विधायक व पूर्व सांसद की पुत्रवधु हर्षिनी कुल्हरी को नया भाजपा जिलाध्यक्ष बनाने से खत्म हो गया। वर्तमान जिलाध्यक्ष बनवारी लाल सैनी का कार्यकाल स्वर्णिम रहा। उनके नेतृत्व में भाजपा ने झुंझुनूं उपचुनाव में कांग्रेस के अजेय गढ़ को ध्वस्त कर कमल खिलाने का काम किया। मृदुभाषी बनवारी लाल सैनी ने भाजपा में मची गुटबाजी में लगाम लगाने में काफी हद तक सफलता हासिल की। उनके दुबारा जिलाध्यक्ष के मनोनयन में उनकी उम्र आड़े आ गई। झुन्झुनू भाजपा जिलाध्यक्ष की दौड़ में ओमेंद्र चारण, दिनेश धाबाई, विक्रम सैनी, विकास लोटिया, कमलकांत शर्मा, सरजीत चौधरी, योगेंद्र मिश्रा आदि थे लेकिन जो योग्यता हर्षिनी कुल्हरी मे थी उपरोक्त नेताओं में नहीं थी। भाजपा जिलाध्यक्ष की दौड़ में जो नेता थे, शायद भाजपा प्रदेश नेतृत्व के मापदंडों पर खरे नहीं थे और वह मापदंड था वंशवाद। भाजपा सदैव कांग्रेस पर वंशवाद को लेकर हमलावर रही है लेकिन वंशवाद चाहे निचले स्तर हो या उच्च स्तर पर हो वह वंशवाद की श्रेणी में ही आता है। हालांकि संगठनात्मक नियुक्ति भाजपा प्रदेश नेतृत्व का विशेषाधिकार है लेकिन भाजपा के समर्पित, निष्ठावान व संगठन में कार्य करने वाले नेताओं को दरकिनार किया जाए तो प्रश्न उठने लाजिमी है। यदि जातिगत समीकरण ही योग्यता का मापदंड है तो इस जाति के जिले में बहुत से नेता हैं, जिनको संगठन का लंबा अनुभव भी है। जैसे विशंभर पूनीया, प्यारेलाल ढूकीया, सरजीत चौधरी, उनको मौका मिलना चाहिए था और यदि महिला सशक्तिकरण को लेकर भाजपा प्रदेश नेतृत्व संवेदनशील है तो अनुभवी संतोष अहलावत को भी जिलाध्यक्ष बनाया जा सकता था। नवनियुक्त जिलाध्यक्ष के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती जिले में अनगिनत पावर सैंटर में विभक्त नेताओं की महत्वाकांक्षा को पूरा कैसे किया जाए। विदित हो जब कोई मंत्री या नेता झुंझुनूं आता है तो टोल प्लाजा से ही अलग अलग ढाणियों मे स्वागत सत्कार होता है। इसको लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठोड़ ने नाराजगी भी व्यक्त की थी। इसके साथ ही आगामी नगर निकाय चुनावों में भी पार्टी में एकजुटता का संदेश देना सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसके साथ ही जिले में टीम का गठन उनके लिए टेढ़ी खीर होगी और नई टीम के गठन के साथ ही असंतोष के स्वर सुनने को मिलेंगे। हालांकि उनका राजनीतिक जीवन कोई लंबा नहीं है और न ही संगठन का अनुभव भी रहा है लेकिन जातिगत समीकरण व महिला होने के साथ ही वंशवाद भी पद दिलाने में सहायक सिद्ध हुआ है। इस नियुक्ति को यदि भाजपा के सिद्धांतों के रूप में देखे तो भाजपा एक पद एक नेता का आलाप करती रही है। हर्षिनी कुल्हरी जो अभी जिला प्रमुख हैं व सत्ता में इनकी भागीदारी है तो उनके मनोनयन में भाजपा ने कही न कही अपने सिध्दांतों को भी दरकिनार किया है।
आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) परिवार की तरफ से नवनियुक्त भाजपा जिलाध्यक्ष हर्षिनी कुल्हरी को बहुत बधाई देने के साथ ही आशा की जाती है कि उनके कार्यकाल में भाजपा जिले में अच्छे प्रदर्शन करेगी।