राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट की मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है। सूत्रों के अनुसार सचिन पायलट अपने पिता केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वी पुण्यतिथि पर 11 जून को दौसा में होने वाले कार्यक्रम का निमंत्रण देने अशोक गहलोत के निवास पर आये थे। इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक विश्लेषक कयास लगा रहे हैं कि गहलोत व पायलट के बीच राजनीतिक मतभेद खत्म हो रहे हैं लेकिन यह तो भविष्य की गर्त में छिपा प्रश्न है परन्तु देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी में वर्तमान समय में गहलोत व पायलट के कद में बहुत अंतर दिखाई देता है। गहलोत तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, केन्द्रीय मंत्री व महासचिव रह चुके हैं परन्तु वर्तमान समय में गहलोत के पास कोई पद नहीं है। यह गहलोत के करीब चालीस साल के राजनीतिक जीवन में पहला अवसर है कि अशोक गहलोत कांग्रेस में पदविहीन है। अशोक गहलोत की कभी गांधी परिवार में तूती बोलती थी। अशोक गहलोत का नाम कभी गांधी परिवार के खास सिपहसालारो में शुमार था। अशोक गहलोत के अपने मुख्यमंत्री काल में गांधी परिवार को चुनौती देने का ही परिणाम है कि राजनीतिक वनवास भोग रहे हैं। विदित हो गहलोत द्वारा विधायकों की समानांतर बैठक और फिर उनके द्वारा दिए गये इस्तीफे के प्रकरण से गांधी परिवार बेहद खफा हैं। इस प्रकरण से राहुल गांधी ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी भी बेहद नाराज़ हैं। इसके विपरीत वर्तमान समय में सचिन पायलट के पास राष्ट्रीय महासचिव जैसा महत्वपूर्ण पद होने के साथ ही राष्ट्रीय मिडिया में कांग्रेस का पक्ष प्रस्तुत करते देखे जा सकते हैं। कांग्रेस की निति निर्धारण में पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका देखी जा सकती है। अशोक गहलोत व सचिन पायलट की राजनीतिक अदावत से शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा। पायलट ने खफा होकर अपने विधायको की बाड़े बंदी की थी। उससे खफा होकर अशोक गहलोत ने पायलट को निम्न स्तर की भाषा के अलंकारों से अलंकृत किया था। इसके विपरीत सचिन पायलट ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए कभी भी अशोक गहलोत के लिए अशोभनीय भाषा का प्रयोग नहीं किया। कांग्रेस पार्टी की यह परम्परा रही है कि जिस नेता पर गांधी परिवार का हाथ होता है, उसी को राज्य में तवज्जो दी जाती है, चाहे उसको इसका खामियाजा ही क्यों न भुगतना पड़े। इसका उदाहरण हरियाणा के विधानसभा चुनाव है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा गांधी परिवार के चहेते होने के कारण कुमारी शैलजा को दरकिनार कर दिया, जो कि कांग्रेस को महंगा पड़ा था। कांग्रेस सदैव परिवारवादी परम्परा वाली पार्टी मानी जाती है। इसमें गांधी परिवार की चरण पादुका उठाने वाला नेता ही आगे आ सकता है। वैसे देखा जाए तो बदलते राजनीतिक मौसम में गांधी परिवार अब राजस्थान में पायलट में कांग्रेस का भविष्य देख रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सचिन पायलट की युवा मतदाताओं पर पकड़ है। अब गहलोत पायलट के रिश्तों में जमी बर्फ क्या पिघलेगी, इस पर राजनीतिक विश्लेषको की नजर है। वैसे राजनीति अवसर व संभावनाओं का खेल होती है। अशोक गहलोत अपने लंबे राजनीतिक अनुभव से आने वाली परिस्थिति को शायद समझ गये होंगे कि कड़वाहट का दौर खत्म करना ही एकमात्र समाधान है।
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