वैसे तो शेखावाटी खास कर झुंझुनूं जिले के लिए पीने के पानी की समस्या कोई नई नहीं है। इस मुद्दे को लेकर राजनेता अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करते रहे हैं। इसमें सबसे लंबी राजनीतिक पारी खेलने में स्वर्गीय शीशराम ओला का नाम आता है, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम चरण तक इस मुद्दे का जी खोलकर दोहन किया। खैर यह तो इतिहास की बात हुई लेकिन खास चर्चा का विषय है कि डबल इंजन सरकार के माननीय जलदाय मंत्री का झुन्झुनू दौरा है। मंत्री कन्हैया लाल चौधरी ने झुन्झुनू में जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों व जलदाय विभाग के अफसरों की मीटिंग ली, जिसमें उन्होंने पीने के पानी के संकट को लेकर तात्कालिक उपाय करने पर जोर दिया कि पीने के पानी की उपलब्धता इस गर्मी के मौसम को देखते हुए प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। जहां जरूरत हो, वहां टैंकरों से पानी उपलब्ध करवाया जाए। मंत्री महोदय की आमजन की समस्या को लेकर जिस संवेदनशीलता का परिचय दिया, उसका स्वागत होना चाहिए लेकिन सवाल यह उठता है कि पानी आयेगा कहां से ? मंत्री महोदय ने डबल इंजन सरकार आते ही हरियाणा सरकार के साथ यमुना जल को लेकर जो ऐतिहासिक समझौता हुआ था, उसको लेकर बैठक में एक शब्द भी नहीं बोला। तत्पश्चात मंत्री कन्हैया लाल चौधरी का चिड़ावा में तिरंगा यात्रा में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के लिए चिड़ावा पहुंचे। समारोह में वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा मंत्री को पीने के पानी की समस्या से अवगत करवाना वहां कुछ स्थानीय नेताओं को रास नहीं आया और मंत्री महोदय के समक्ष ही बवाल मच गया। इस बवाल का एक विडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। हालांकि आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) इस विडियो को लेकर पुष्टि नहीं करता लेकिन जो भी उस विडियो में निकलकर आ रहा है, वह भाजपा की कथनी और करनी में भेद स्पष्ट दिखाई देता है। विदित हो कि भाजपा इस बात का दावा करती रहती है कि हर छोटे से छोटे कार्यकर्ता का भी सम्मान होता है, जबकि वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता जो कभी संगठन में जिला टीम के सदस्य भी थे, यह कहते नजर आ रहे हैं कि जब भाजपा के शासन में ही हमारा काम नहीं होता है तो आखिर कब होगा। कुछ स्थानीय नेताओं ने पानी का भी राजनीतिकरण कर दिया और वहां यह कहते नजर आ रहे थे कि जब वोट कांग्रेस को दिया तो पानी भी कांग्रेस से ही मांगो। झंडी फाड़ने को लेकर भी यह बयान चर्चा में है। अब यह तो समय की गर्त में छिपा प्रश्न है कि कौन किसकी झंडी फाड़ता है लेकिन ऐसा बयान स्थानीय नेता की हताशा का परिचायक है या घमंड का प्रतीक है यह तो आने वाला समय ही निर्धारित करेगा। पिलानी विधानसभा का दुर्भाग्य कहें या कही न कही स्थानीय नेताओं की राजनीतिक इच्छा की कमी कहे कि पिलानी विधानसभा को कुंभाराम लिफ्ट परियोजना से जोड़ने को लेकर वंचित रखा गया। जो 1032 करोड़ रूपये का बजट पास हुआ है, उसमें पिलानी विधानसभा का जिक्र ही नहीं है। विदित हो कि जब तक किसी परियोजना को प्रशासनिक व वित्तिय स्वीकृति नहीं मिलती, उसका धरातल पर आना असंभव है लेकिन उपरोक्त घटनाक्रम को देखकर यही कहा जा सकता है कि गर्मी में पारे के उबाल के साथ ही पिलानी विधानसभा में पानी को लेकर सियासत में भी बवाल देखने को मिला।
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