चिड़ावा की प्रधान डूडी प्रकरण को भाजपा के परिप्रेक्ष्य में देखे तो शुरू से अभी तक भाजपा की किरकिरी ही हुई है। इंद्रा डूडी पर अनियमितताओं व भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले रोहताश धांगड़ उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। विदित हो इंद्रा डूडी कांग्रेस की प्रधान थी लेकिन उस समय अविश्वास प्रस्ताव को लेकर भाजपा के नेता बबलू चौधरी ने उनका भरपूर सहयोग किया व उनको अपने झुंझुनूं आवास पर एक प्रेस कांफ्रेंस में बिना संगठन को विश्वास मे लिए उनको भाजपा का पटका पहनाकर भाजपा ज्वाइन करने का ऐलान कर दिया। जबकि प्रधान का पद कोई छोटा पद नहीं होता, यदि भाजपा ज्वाइन करवाना होता तो जिलाध्यक्ष की अनुशंसा पर प्रदेश कार्यालय में उनको भाजपा की सदस्यता दिलवाई जाती लेकिन एक ही स्थानीय नेता ने खुद को ही संगठन मान लिया। तत्पश्चात एक नाटकीय घटनाक्रम में इंद्रा डूडी को निलंबित कर दिया गया व भाजपा के एक दूसरे गुट ने इसमें अपनी महती भूमिका निभाई और नियमों को दरकिनार कर उप प्रधान की बजाय रोहतास धागड़ को प्रधान पद की कुर्सी पर बैठा दिया गया। यह ताजपोशी झुंझुनू विधायक की उपस्थिति में की गई। अपने निलंबन को लेकर इंद्रा डूडी ने हाईकोर्ट की शरण ली। उसका फैसला आया कि सात दिन के अंदर रोहतास धागड़ को प्रधान पद से हटाकर उप प्रधान को प्रधान का चार्ज दिया जाए। अपने फैसले में माननीय कोर्ट ने कहा कि यह कितना अंसवैधानिक है कि उसी व्यक्ति को प्रधान बनाया गया, जिसने इंद्रा डूडी पर अनियमितताओं व भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। अब उपरोक्त प्रकरण का पोस्टमार्टम करें तो स्थानीय नेताओं की गुटबाजी ने अपने वर्चस्व की लडाई के चलते कहीं न कहीं भाजपा की किरकिरी करवाई है। चिड़ावा के एक स्थानीय नेता ने दंभ भरा कि उनके प्रयासों से ही प्रधान पद भाजपा की झोली में आया है लेकिन उनकी खुशी तब काफूर हो गई जब प्रधान धागड़ भाजपा के दूसरे गुट की गोद में बैठ गये। अब जब माननीय कोर्ट का फैसला आया है, उस पर सरकार क्या फैसला लेती है उसका इंतजार रहेगा ।
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