बाल मजदूरी एक अभिशाप

AYUSH ANTIMA
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हमारे समाज में बाल मजदूरी एक अभिशाप है व मानवता के खिलाफ अपराध भी है। भारत जैसे देशों में अत्यधिक गरीबी के कारण पारिवारिक दबाव के चलते 11 साल से कम उम्र के बच्चों को मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जाता है। बाल मजदूरी का सीधा सा अभिप्राय है कि ऐसे काम जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व नैतिक रूप से बच्चों के लिए ख़तरनाक हो। बच्चों के कल्याण के लिए कल्याणकारी समाज और सरकारों की तरफ से बहुत सारे जागरूकता अभियान चलाने के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे के ज्यादातर बच्चे रोज बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं। बाल मजदूरी एक सामाजिक समस्या है, जो लंबे समय से चल रही है। देश की आजादी के बाद इसको लेकर बहुत से कानून बने परन्तु कोई भी कानून प्रभावी साबित नहीं हुआ। इस समस्या से बच्चों का मानसिक, सामाजिक, शारीरिक व बौध्दिक तरीके से विनाश हो रहा है। कृषि क्षेत्र व होटल के कारोबार में बाल मजदूरी की दर सबसे उच्च है। बाल मजदूरी वह ज्वलंत मुद्दों में से एक है, जो देश के विकास और वृध्दि में बाधक है। स्वस्थ बच्चे किसी भी देश का स्वर्णिम भविष्य होते हैं। महंगी शिक्षा के चलते अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा से वंचित कर देते हैं क्योंकि जो जीवनयापन के लिए ही पैसा नहीं कमा पाते तो बच्चों को शिक्षा दिलवाना दूर की बात है। इसके चलते बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय कठिन श्रम में शामिल कर लेते हैं। इस सामाजिक बुराई को लेकर देश की बहुत समाजसेवी संस्थाएं, एनजीओ जो प्रभावी तरीके से काम कर रहे हैं परन्तु यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। सरकार को भी इस दिशा में प्रबल प्रयास करने के साथ ही बाल मजदूरी को लेकर कानून में कठोर प्रावधानों के साथ इनको क्रियान्वित करने को लेकर काम करें। लोगों को उचित मजदूरी के साथ ही शिक्षा को आम आदमी की पकड़ में हो, ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। राज्यों में फ्री की बंदरबांट करने के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को लेकर सरकार को सोचना होगा। मजदूर के बच्चों के लिए उचित शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया करवाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। सामाजिक संगठनों को भी इस सामाजिक बुराई को खत्म करने में अपनी उर्जा लगाने की जरूरत है। इसके साथ ही जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर भी बल देना होगा कि आजाद भारत के नौनिहाल आजाद न होकर बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं।

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