दादू आपा उरझें उरझिया, दिसै सब संसार। आपा सुरझें सुरझिया, यहु गुरुज्ञान विचार।।
संतशिरोमणि ब्रह्मऋषि श्रीदादू जी महाराज कहते हैं कि जिसकी जैसी दृष्टी होती है, उसको संसार वैसा ही दिखाई देता है। जैसे संत को प्रत्येक आत्मा में संत दिखाई देता है, पापी को प्रत्येक मनुष्य में पाप, चोर को प्रत्येक मनुष्य में चोर दिखाई देता है। यह स्वभाविक है कि जैसी दृष्टी होगी वैसी ही सृष्टी होगी। गुरु के ज्ञान और विचार से ही मनुष्य की दृष्टी शुद्ध होती है। वेदांतसारसंग्रह में मनुष्य के अंदर जैसे संस्कार होते है। वो मनुष्य वैसा ही आचरण करता है, वैसा ही कर्म करता है और वेसे ही संसार के दृश्य अपने अनुसार दिखाई देते है।